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________________ S AIRACTICALCIGAR १०२ वें पद्य में शुद्धि का निर्जरा फल और अन्तिम पद्य में ग्रन्थकार का नामोल्लेख है। इस प्रकार भोजनशुद्धि के १७ दोषों का। का अनेक भांगों सहित विवेचन १०३ श्लोक के छोटे से प्रकरण के यह भी आजै लघुसत्रिक छन्द में प्रथित करना गणिजी | का उक्तिलाघव और छन्दयोजना का चातुर्य प्रकट करता है। उक्त प्रकरण में प्ररूपित ४७ दोष निम्नलिखित हैं: गृहस्थानित उत्पादन के १६ दोष-१ आधार्मिक, २ औदेशिक, ३ पूतिकर्म, ४ मिश्रजात, ५ स्थापना, ६ प्राभृतिक, ७ प्रादुष्करण, ८ क्रीत, ९प्रामित्य, १० परिवर्तित, ११ अभिहत, १२ उभिन्न, १३ मालोपहत, १४ अच्छेद्य, १५ अनिसृष्ट और १६ अध्यवपूरक. साधु आश्रित उद्गम (संपादन) के १६ दोष-१ धात्री, २ दूती, ३ निमित्त, ४ आजीव, ५ वनीपकत्वकरण, ६ चिकित्सा, क्रोध, ८मान, ९ माया, १० लोभ, ११ पूर्व पश्चात्संस्तव, १२ विद्याप्रयोग, १३ मन्त्रप्रयोग, १४ चूर्णप्रयोग, १५ योग और १६ मूल कर्म। ___ग्रहणैषणा के दस दोष-१ शकित, २ म्रक्षित, ३ निक्षित, १ पिहित, ५ संहृत, ६ दायक, ७ उन्मिश्र, ८ अपरिणत, ९ लिप्त और १० छर्दिन । पासषणा के पांच दोष-१ संयोजना, २ प्रमाण, ३ अंगार, ४ धूम, ५ अकारण। टीकायेंइस प्रकरण की प्रसिद्धि असणसमाज में काफी हुई; इस का पठन-पाठन अत्यधिक वेग से चला, आज भी सैकड़ों हस्तलिखित प्रतियों की उपलब्धि इसके प्रचार का प्रमाण दे रही है। इस पर कई जैन विद्वान् आचार्योंने टीकायें रच कर इसकी प्रामाणिकता सिद्ध की है। वर्तमान में इस पर निन्नलिखित टीकायें प्राप्त हैं: SARKARitter
SR No.090361
Book TitlePindvishuddhi Prakaranam
Original Sutra AuthorUdaysinhsuri
AuthorBuddhisagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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