SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ FRIER पिण्डविशुद्धि० टीकाइयो पेतम् । १ श्रीचन्द्राचार्यकृत वृत्ति, २ यशोदेवसूरि रचित लघुवृत्ति, ३ उदयसिंहसूरि विरचित दीपिका, ४ अजितदेवसरि गुंफित उपोद्घात। दीपिका, ५ संवेगदेवगणि लिखित बालावधोध, ६ ? मात कर्तृक अवचूरि । वृचिवृत्तिप्रस्तुत संस्करण यशोदेवसूरि कृत लघुवृत्ति एवं उदयसिंहसूरि प्रणीत दीपिका सहित प्रकाश में आ रहा है। लघुवृत्तिकार-यशोदेवमूरि । कारादि विचार । चन्दकलीय श्रीवीरगणि के प्रशिष्य श्रीचन्द्रसूरि के आप शिष्य थे। सं. ११७६ में अपने सुयोग्य शिष्य श्रीपार्श्वदेवगणि की 17 सहायता से आपने इसकी रचना पूर्ण की । इस का संशोधन आचार्य मुनिचन्द्रसूरिने किया। जैसा कि प्रशस्ति में कहा गया है:-- आसीचन्द्रकुलोद्गतिः शमनिधिः सौम्याकृतिः सन्मतिः, संलीनः प्रतिवासरं निलयगो वर्षासु सुध्यानधीः । हेमन्ते शिशिरे च शावरहिम सोढुं कृतो स्थिति-स्विचण्डकरे निदाघसमये चाऽऽतापनाकारकः ॥१॥ आदेयतातपस्त्याग-व्याख्यातृत्वादिसद्गुणैः । लोकोत्तरैर्विचालव, श्रीमवीरगणिप्रभुः ॥२॥ युग्मम] श्रीचन्द्रसूरिनामा, शिष्योऽभृत्वस्य भारतीमधुरः। आनन्दितमन्यजन:, शंसितसंशुद्धसिद्धान्तः ॥ ३ ॥ तस्यान्तेवासिना दुग्धा, श्रीयशोदेवसूरिणा। सुशिष्यपार्श्वदेवस्य, साहाय्यात् प्रस्तुता वृत्तिा ॥४॥ 45 पिण्ड विशुद्धिप्रकरण-वृतिं कृत्वा यदवाप्तं मया कुशलम् । तेनाऽऽभवमपि भूयाद्, भगवदचने ममाऽम्यासः॥६॥ 1 विजयदानसूरि जैन प्रन्यमाला, सुरत से प्रकाशित । ॥३३॥
SR No.090361
Book TitlePindvishuddhi Prakaranam
Original Sutra AuthorUdaysinhsuri
AuthorBuddhisagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy