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[ पवयणसारो
पर्याय से उत्पाद, किसी ( पर्याय) से विनाश (और) किसी ( पर्याय ) से श्रव्य होता है, ऐसा जानना चाहिए ।
सार-- इससे [ यह कहा गया है कि ] शुद्ध आत्मा के भी उत्पाद-आदि तीन रूप तथा द्रव्य का लक्षणभूत अस्तित्व अवश्यंभावी है ।
तात्पर्यवृति
अथोत्पादादित्रयं यथा सुवर्णादिमुर्तपदार्थेषु दृश्यते तथैवामूर्तेपि सिद्धस्वरूपे विज्ञेयं पदार्थत्वादिति निरूपयतिः -
उत्पादों य विणासो विज्जवि सध्वस्स अट्ठनावस्स उत्पादश्च विनाशश्च विद्यते तावत्सर्वस्यार्थं जातस्य पदार्थ समूहस्य । केन कृत्वा ? पज्जाएण दु केणवि पर्यायेण तु केनापि विवक्षितेनार्थव्यञ्जनरूपेण वा । स चार्थ कि विशिष्ट: ? अट्टो खलु होइ संभूबो अर्थः खलु स्फुटं सत्ताभूतः सत्ताया अभिन्नो भवतीति । तथाहि सुवर्ण गोरस मृत्तिका पुरुषादिमूर्त पदार्थेषु यथोत्पादादित्रयं लोके प्रसिद्धं तथैवामूर्तेपि मुक्तजीवे । यद्यपि शुद्धात्मरुचिपरिच्छित्ति निश्चलानुभूतिलक्षणस्य संसाराचसानोत्पन्नकारणसमयसारपर्यायस्य विनाशो भवति तथैव केवलज्ञानादिव्यक्ति रूपस्य कार्यस मयसारपर्यायस्योत्पादश्च भवति तथाप्युभयपर्यविपरिणतात्मद्रव्यत्वेन धीव्यत्वं पदार्थत्वादिति । अथवा ज्ञेयपदार्थाः प्रतिक्षणं भङ्गत्रयेण परिणमन्ति तथा ज्ञानमपि परिच्छित्यपेक्षया भङ्गये परिणमति । षट्स्थानगतागुरुलघुक गुणवृद्धिहान्यपेक्षया वा भङ्गत्रयमवबोद्धव्यमिति सूत्रतात्पर्यम् || १८ ||
एवं सिद्धजीवेद्रव्यार्थिकनयेन नित्यत्वेऽपि विवक्षितपर्यायेणोत्पादव्ययीव्यस्थापन रूपेण द्वितीयस्थले गाथाद्वयं गतम् ।
उत्थानिका— आगे कहते हैं कि जैसे सुवर्ण आदि मूर्तिक पदार्थों में उत्पाद व्यय श्रीव्य देखे जाते हैं, वैसे ही अमूर्तिक सिद्ध स्वरूप में भी जानना चाहिये क्योंकि सिद्ध भगवान् भी पदार्थ हैं ।
अन्वय सहित विशेषार्थ - - ( केणवि दुपज्जा एण) किसी भी पर्याय से अर्थात् किसी भी विवक्षित अर्थ या व्यंजनपर्याय से अथवा स्वभाव या विभावरूप से ( सव्वस्स अट्ठजादस्स) सर्व पदार्थ समूह के ( उप्पादो य विणासो) उत्पाद और विनाश (विज्जदि ) होता है । ( अट्ठो) पदार्थ ( खलु ) निश्चय करके ( सम्भूबो होइ) सत्तारूप है, सत्ता से
अभिन्न है । प्रयोजन यह है कि सुवर्ण, गोरस, मिट्टी, पुरुष आदि मूर्तिक पदार्थों में जैसे उत्पाद व्यय धौव्य है ऐसा लोक में प्रसिद्ध है, तैसे अमूर्तिक मुक्त जीव में हैं। यद्यपि मुक्त होते हुए शुद्ध आत्मा की रुचि उसी का ज्ञान तथा उसी का निश्चलता से अनुभव इस् रत्नत्रयमय लक्षण को रखने वाले संसार के अन्त में होने वाले कारणसमयसारखा