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________________ पचयणसारो | [ ५६३ अन्वय सहित विशेषार्थ - ( दंसणणाणुवदेसो) तीन मूढ़ता आदि पच्चीस दोष रहित सम्यक्त्व तथा परमागम का उपदेश सो ज्ञान, इन दोनों का उपदेश सो दर्शन- ज्ञान का उपदेश है (सिस्सग्गहण ) रत्नत्रय के आराधक शिष्यों को दीक्षित करना ( च तेसि पोषणं ) और उन शिष्यों के शयन भोजनादि पोषण की चिन्ता (जिणिदपूजोवदेसो य) तथा यथासंभव जिनेन्द्र की पूजा आदि का धर्मोपदेश ये सब ( सरागाणं चरिया) अर्थात् धर्मानुराग सहित सरागचारित्र पालने बालों का ही चारित्र है । कोई शिष्य प्रश्न करता है कि साधुओं के चारित्र के कथन में आपने बताया कि शुभोपयोगी साधुओं के भी कभी-कभी शुद्धोपयोग की भावना देखी जाती है तथा शुद्ध साधुओं के कभी-कभी शुभोपयोगी भावना होती जाती है। तंसे ही श्रावकों के भी सामायिक आदि उदासीन धर्मक्रिया के काल में शुद्धोपयोग की भावना देखी जाती है तब साधु और श्रावकों में क्या अंतर रहा ? इसका समाधान आचार्य करते हैं कि आपने जो कहा वह सब युक्ति संगत है-ठीक है । परन्तु जो अधिकतर शुभोपयोग के द्वारा ही वर्तन करते हैं यद्यपि वे कभी-कभी शुद्धोपयोग की भावना कर लेते हैं ऐसे अधिकतर शुभोपयोगी श्रावकों को शुभोपयोगी ही कहा है क्योंकि उनके शुभोपयोग को प्रधानता है तथा जो शुद्धोपयोगी हैं, साधु हैं यद्यपि वे - किसी काल में शुभोपयोग द्वारा वर्तन करते हैं तथापि वे शुद्धोपयोगी हैं। बहुलता की प्रधानता रहती है । जैसे किसी वन में आम्रवृक्ष अधिक हैं व और वृक्ष थोड़े हैं तो उसको आम्रवन कहते हैं और जहाँ नीम के वृक्ष बहुत हैं, आम्रादि के कम हैं वहां उसको नोम का वन कहते हैं ॥४४८ ॥ अथ सर्वा एव प्रवृत्तयः शुभोपयोगिनामेव भवन्तीत्यवधारयति उवकुणदि जो विणिच्चं चादुत्वण्णस्स समणसंघस्स । कार्याविराधणरहिवं सो वि सरागप्पधाणो से || २४६ ॥ उपकरोति योऽपि नित्यं चातुर्वर्णस्य श्रमण संघस्य । काराधनरहितं सोऽपि सरागप्रधानः स्वात् ॥ २४६ ॥ प्रतिज्ञातसंयमत्यात् षट्कायविराधनरहिता या काचनापि शुद्धात्मवृत्तित्राणनिमित्ता चातुर्वर्णस्य श्रमण संघस्योपकारकरणप्रवृत्तिः सा सर्वापि रामप्रधानत्वात् शुभोपयोगिनामेव भवति न कदाचिदपि शुद्धोपयोगिनाम् ॥ २४६॥ भूमिका – अब, यह निश्चय करते हैं कि सभी प्रवृत्तियां शुभोपयोगियों के हो होती हैं
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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