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________________ पवमणसारो ] [ ५६६ ज्ञान से सिद्धि नहीं पा सकता है, तथा चिदानन्दमय एक स्वभावरूप अपने परमात्मा आदि पदार्थों का श्रद्धान करता हुआ भी यदि विषयों और कषायों के अधीन रहकर असंयमी रहता है तो भी निर्वाण को नहीं पा सकता है। जैसे किसी पुरुष के हाथ में दीपक है तथा उसको यह निश्चयरूप श्रद्धान नहीं है कि यदि दीपक से देखकर चलूंगा तो कुएं में गिरने का अवसर प्राप्त होने पर कुएं में मैंन गिगा, इसमें मेरा हित है, तो उसके पास दीपक होने से भी कोई लाभ नहीं है । तैसे हो किसी जीव का परमागम के आधार से अपने आत्मा का ऐसा एक ज्ञान है जो सर्व ज्ञेय पदार्थ के आकारों को हाथ पर रखे हुए आंवले के समान, स्पष्ट जानने को समर्थ है । अपनी आत्मा को ऐसा जानता हुआ भी यदि यह निश्चयरूप श्रद्धान नहीं है कि मेरा आत्मा ही ग्रहण करने योग्य है तो उसके लिए दीपक के समान आगम क्या कर सकता है ? कुछ भी नहीं करता है। वही दीपक को रखने वाला पुरुष अपने पुरुषार्थ के बल से कूप पतन से यदि नहीं बचता है तो उसका श्रद्धान दीपक व दृष्टि कुछ भी कार्यकारी नहीं हुई, तसे ही यह जीव श्रद्धान और ज्ञान सहित भी है, परन्तु पुरुष के समान चारित्र के बल से रागद्वेषादि विकल्परूप असंयमभाव से यदि अपने को नहीं हटाता है तो श्रद्धान तथा ज्ञान उसका क्या हित कर सकते हैं ? अर्थात् कुछ भी नहीं कर सकते । इससे यह बात सिद्ध हुई कि परमागमज्ञान, तत्वार्थ श्रद्धानतथा संयमपना इन तीनों में से केवल दो सेवा मात्र एक से निर्वाण नहीं हो सकता है, किन्तु तीनों से ही मोक्ष होता है। इस तरह भेद और अभेद स्वरूप रत्नत्रयमय मोक्षमार्ग को स्थापन की मुख्यता से दूसरे स्थल में चार गाथाएं पूर्ण हुई । यहां यह भाव है कि बहिरात्मा अवस्था, अन्तरात्मा अवस्था परमात्मा अवस्था या मोक्ष अवस्था ऐसी तीन अवस्थायें जीव को होती हैं, इन तीनों अवस्थाओं के अनुरूप होकर द्रव्य रहता है । इस तरह परस्पर अपेक्षा सहित द्रव्यरूप व पर्यायरूप जीव पदार्थ को जानना चाहिये | अब यहां मोक्ष का कारण विचारा जाता है। मिथ्यात्व रागादि रूप जो बहिरात्मा अवस्था है वह तो अशुद्ध है इसलिये मोक्ष का कारण नहीं है । मोक्षावस्था तो शुद्धात्मा रूप अर्थात् फलरूप है जो आगामी काल में होगी। इन दोनों बहिरात्मावस्था और मोक्षावस्था से भिन्न जो अन्तरात्मावस्था है वह मिध्यात्व रागादि से रहित होने के
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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