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________________ ५६० ] [ पवयणसासे (णेवापाणं परं) न तो आत्मा को न परको (वियाणादि) जानता है। (अट्ठे अविजाणतो) परमात्मा आदि पदार्थों को नहीं जानता हुआ (भिक्ख) साधु (किह) किस तरह (कम्माणि) कर्मों का (खवेदि) क्षय कर सकता है ? "गुणजीवापज्जत्ती पाणा सष्णा मम्गणाओ य, उचओगोवि य कमसो कीसं तु परूवणा भणिदा" श्री गोम्मटसार की इस गाथा का भाव यह है कि इस गोम्मटसार जीवकांड में २० प्ररूपणा का कथन है, १. गुणस्थान, २. जीवसमास, ३. पति , ४. प्राण, ५. संज्ञा, ६. गतिमार्गणा, ७. इन्द्रिय मा०, ८. काय मा०, है. योग मा०, १०. घेव मा०, ११. कषाय मा०, १२. ज्ञान मा०, १३. संयम मा०, १४. दर्शन मा०, १५. लेश्या मा०, १६. भव्य मा०, १७. सम्यक्त्व मा०, १८. संजी मा०, १६. आहार, २०. उपयोग । जिसने इन बीस प्ररूपणा के आगम को नहीं जाना तथा "भिण्णउ जेण ण जाणिय णियदेहहंपरमत्थु । सो अधउ अवरह किम दरिसाव पंथु। इस बोहा सूत्र का भाव यह है कि जिसने अपनी देह से परमपदार्थ आत्मा को भिन्न नहीं जाना वह आतरौद्रध्यानी किस तरह अपने प्रात्मपार्थ को देख सकता है। इस प्रकार के आगम में सारभूत अध्यात्मशास्त्र को जिसने नहीं जाना अर्थात् बोस प्ररूपजाओं के शास्त्र को और अध्यात्मशास्त्र इन दोनों शास्त्रों को नहीं जाना, वह पुरुष रागादि दोषों से रहित तथा अन्याबाध सुख आदि गुणों के धारी अपने आत्मद्रव्य को भावकर्म के वाच्य राग द्वेषादि नाना प्रकार विकल्प जालों से वास्तव में भिन्न नहीं जानता है और न कर्मरूपी शत्रु को विध्वंस करने वाले अपने ही परमात्म-तत्व को ज्ञानावरण आदि द्रव्य कर्मों से जुदा जानता है और न अशरीरी शुद्ध आत्म पदार्थ को शरीरादि नोकर्मों से जुदा समझता है । इस तरह भेद ज्ञान के न होने पर उसके शरीर में विराजित अपने शद्धात्मा को रुचि नहीं होती है और न उसकी भावना सर्व रागादि का त्याग करने की होती है, ऐसी दशा में उसके कर्मों का क्षय किस तरह हो सकता है ? अर्थात् कदापि नहीं हो सकता है। इसी कारण से मोक्षार्थी पुरुष को परमागम का अभ्यास ही करना योग्य है, ऐसा तात्पर्य है ॥२३३॥ अथागम एवेकश्चक्षुर्मोक्षमार्गमुपसर्पतामित्यनुशास्ति आगमचक्खू साहू इंदियचक्खूणि सव्वभूवाणि । देवाय ओहिचक्खू सिद्धा पुण सव्वदो चक्खु ॥२३४॥ आगमचक्षुः साधुरिन्द्रियचशूषि सर्वभूतानि । देवाश्चावधिचक्षुषः सिद्धाः पुनः सर्वतश्चक्षुषः ।।२३४।। १, देवावि (ज०७०)।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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