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________________ ५४४ ] [ पक्यणसारा हार है, क्योंकि वह मुनित्व का नाश नहीं करता । पूर्णोधर आहार मुनिपने का नाश करने से कथंचित् हिसायतन होता हुआ योग्य नहीं है, पूर्णोदर आहार करने वाला मुनिपने का नाश करता है, इसलिये यह आहार योगी का आहार नहीं है । यथालन्ध आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही (आहार) विशेष रुचिरूप अनुराग से शून्य है । अयथालब्ध' आहार विशेष रुचिरूप अनुराग से सेवन किया जाता है, इसलिये आत्यंतिक हिसायतन होने से योग्य नहीं है, और अयथालब्ध आहार का सेवन करने वाला विशेष रुचिरूप अनुराग के द्वारा सेवन करने वाला होने से, उसका वह आहार योगी का आहार नहीं है। मिक्षाचरण से आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही आरम्भशून्य है । अभिक्षाचरण से (भिक्षाधरण रहित) आहार में मारम्भ सम्भव होने से हिसायतनत्व प्रसिद्ध है, अतः वह आहार युक्त नहीं है, और ऐसे आहार के सेवन में अन्तरंग अशुद्धि व्यक्त (प्रगट) होने से वह आहार युक्त नहीं है। दिन का आहार हो युक्ताहार है, क्योंकि यहां भली-भांति देखा जा सकता है। अदिवस (रात्रि में) आहार भली-भांति नहीं देखा जा सकता इसलिये उसके हिसायतनत्व अनिवार्य होने से वह आहार योग्य नहीं है, और ऐसे आहार के सेवन में अन्तरंग अशुद्धि व्यक्त होने से वह आहारयुक्त नहीं है। रस की अपेक्षा से रहित आहार ही युक्ताहार है क्योंकि वही अन्तरंगशुद्धि से सुन्दर है। रस की अपेक्षा वाला आहार अन्तरंग अशुद्धि के द्वारा आत्यंतिक हिसायतन होता हआ युक्त (योग्य) नहीं है, और उसका सेवन करने वाला अन्तरंग अशुद्धिपूर्वक सेवन करता है इसलिये वह आहार योगी का नहीं है । मधु मांस सहित आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि उसके ही हिंसायतनत्व का अभाव मधु-मांस सहित आहार हिसायतन होने से योग्य नहीं है, और ऐसे आहार के सेवन में अन्तरंग अशुद्धि व्यक्त होने से वह आहार योगी का नहीं है। यहां मधु-मांस हिसायतन का उपलक्षण है इसलिये समस्त हिंसायतन शून्य आहार ही युक्ताहार है ॥२२६॥ १. अयथालन्ध—जैसा मिल जाय वैसा नहीं, किन्तु अपनी पसंदगी का स्वेच्छालब्ध ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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