SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 564
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३६ ] । पवयणसारो कथितम् । विणओ स्वकीयनिश्चयरत्नत्रयशुद्धिनिश्चयविनयः तदाधारपुरुषेषु भक्तिपरिणामो व्यवहारविनयः । उभयोऽपि विनयपरिणाम उपकरणं भवतीति निर्दिष्टः । अनेन किमुक्तं भवति-निश्चयेन चतुविधमेवोपकरणम् । अन्यदुपकरणं व्यवहार इति ॥२२५!! उत्थानिका—आगे पूर्व में कहे हुए उपकरणरूप अपवाद व्याख्यान का विशेष वर्णन करते हैं। अन्वय सहित विशेषार्थ--(जिणमग्गे) जिनधर्म में, मोक्षमार्ग में (उययरणं) उपकरण (जहजादरूवं लिग इदि मणि) यथाजातरूप नग्न भेष कहा है (गुरुवयण पि य) तथा गुरु से धर्मोपदेश सुनना (विणओ) गुरुओं आदि की विनय करना (सुत्तज्मयणं च पण्णत्त) तथा शास्त्रों का पढ़ना भी उपकरण कहा गया है। जिनेन्द्र भगवान के कहे हुए मोक्षमार्ग में उपकरण इस भांति कहे गए हैं (१) व्यवहारनय से सर्व परिग्रह से रहित शरीर के आकार पुद्गल पिंडरूप द्रव्यलिंग तथा निश्चय से भीतर मन के शुद्ध बुद्ध एक स्वभाव रूप परमात्मा का स्वरूप (२) विकार रहित परमचैतन्यज्योति स्वरूप परमात्मतत्व के बताने वाले सार भूत और सिद्ध अवस्था के उपदेशक गुरु के वचन (३) आदि मध्य अन्त से रहित छ जन्म जरा मरण से रहित निज आत्मद्रव्य के प्रकाश करने वाले सूत्रों का पढ़ना-परमागम का वचना (४) अपने ही निश्चय रत्नत्रय की शुद्धि से निश्चयविनय और उसके आधार रूप पुरुषों में भक्ति का परिणाम सो व्यवहारविनय बोनों ही प्रकार के विनय परिणाम ऐसे चार उपकरण कहे गए हैं, यही वास्तव में उपकारी हैं। अन्य कोई कमंडलादि व्यवहार में उपकरण हैं ।।२२५॥ अयप्रतिषिद्धशरीरमात्रोपधिपालन विधानमुपविशति इहलोगणिरावेक्खो अप्पडिबद्धो परम्हि लोयम्हि । जुत्ताहारविहारो रहिवकसाओ हवे समणो ॥२२६।। इहलोकनिरापेक्षः अप्रतिबद्धः परस्मिन् लोके । युक्ताहारविहारो रहितकषायो भवेन् श्रमणः ।।२२६।। ___ अनादिनिधनकरूपशुद्धात्मतत्यपरिणतत्वादखिलकर्मपुद्गल विपाकात्यन्तविविक्त - स्वभावत्वेन रहितकषायत्वातदात्यमनुष्यत्वेऽपि समस्तमनुष्यव्यवहारबहिर्भूतत्वेनेहलोकनिरपेक्षत्वत्तथाषिष्यदमादिभावानुभूतितृष्णाशून्यत्वेन परलोकाप्रतिबद्धत्वाच्च परिच्छेद्यार्थीपलम्भप्रसिद्धयर्थप्रदीपपूरणोत्सर्पणस्थानीयाभ्यां शुद्धात्मतत्वोपलम्भप्रसिद्ध्यर्थतच्छरीरसंभोजनसंचलनाभ्यां युक्ताहारविहारो हि स्यात श्रमणः । इदमत्र तात्पर्यम्-यतो
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy