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________________ पवयणसारो ] [ ५३५ जितसहजरूपापेक्षितयथाजातरूपत्वेन बहिरंगलिंगभूताः कायपुद्गलाः श्रूयमाणतत्कालबोधकगुरुगीर्यमाणात्मतत्त्वद्योतकसिद्धोपदेशपचनपुद्गलास्तथाधीयमाननित्यबोधकानादिनिधन • शुद्धात्मतत्त्वद्योतनसमर्थश्रुतज्ञानसाधनीभूतशब्दात्मकसूत्रपुद्गलाश्च शुद्धात्मतत्त्वव्यञ्जकवर्शनादिपर्यायतत्परिणतपुरुषविनीतताभिप्रायप्रवतंकचित्तपुद्गलाश्च भवन्ति । इदमत्र तात्पर्य, कायवद्वचनमनसी अपि न वस्तुधर्मः ॥२२॥ भूमिका- अब, अपवाद के भेद कौन से हैं ? सो कहते हैं अन्धयार्थ- [यथाजातरूपं लिंगं] यथाजातरूप (जन्मजात-नग्न) लिंग [जिनमार्गे] जिनमार्ग में [उपकरणं इति भणितम् | उपकरण कहा गया है, [गुरुवचनं] गुरु के वचन; [सूत्राध्ययनं ज] सूत्रों का अध्ययन [च] और [विनयः अपि] विनय भी [निर्दिष्टम् ] उपकरण कहे गये हैं। ___टीका-इसमें जो अनिषिद्ध उपधिरूप अपवाद है, वह सभी वास्तव में ऐसा ही है कि जो श्रामण्य पर्याय के सहकारी कारण के रूप में उपकार करने वाला होने से उपकरणभूत है, दूसरा नहीं। उसके विशेष (भेव) इस प्रकार हैं--(१) सर्व औपाधिक भावों से रहित स्वाभाविक यथाजातरूपत्व के कारण जो बहिरंग लिंगभूत हैं, ऐसी पुद्गलकाय (२) जिनका श्रवण किया जाता है ऐसे तत्कालबोधक, गुरुद्वारा कहे जाने पर आत्मतत्व-योतक, अमोघ उपदेश रूप पौगलिकवचन तथा (३) जिनका अध्ययन किया जाता है ऐसे, नित्यबोधक, अनादिनिधन शुद्ध आत्मतत्व को प्रकाशित करने में समर्थ श्रुतज्ञान के साधनभूत शब्दात्मक सूत्रपौद्गलिक और (४) शुद्ध आत्मतत्व को व्यक्त करने वाली जो दर्शनादिक पर्याय और उन रूप से परिणत पुरुष के प्रति विनय का अभिप्राय प्रवर्तित करने वाला पौद्गलिकमन, ये पौद्गलिक काय वचन मन उपकरण हैं। यहां यह तात्पर्य है कि काय की भांति वचन और मन भी वस्तु धर्म नहीं है किन्तु उपकारक होने से उपकरण है ॥२२॥ ___तात्पर्यवृत्ति अथ पूर्वोक्तस्योपकरणरूपापवादव्याख्यानस्य विशेषविवरणं करोति इदि भणिदं कथितम् । किम् ? उवयरणं उपकरणं । क्व ? जिणमगे जिनोक्तमोक्षमार्गे । किमुपकरणम् ? लिंग शरीराकारपुद्गल पिण्डरूपं द्रव्यलिङ्गम् । कि विशिष्टम् ? जहजादरूवं यथाजातरूपं यथाजातशब्देनात्र व्यवहारेण सङ्गपरित्यागयुक्तं नग्न रूपं निश्चयेनाभ्यन्तरेण शुद्धबुद्धकस्वभाव परमात्मस्वरूपं गुरुवयणं पि य गुरुवचनमपि निर्विकारपरमचिज्योतिःस्वरूपपरमात्मतत्त्वप्रतिबोधकं सारभूतं सिद्धोपदेशरूपं गुरूपदेशवचनं । न केवलं गुरूपदेशवचनं सुस्तक्षयणं च आदिमध्यान्तजितजातिजरामरणरहितनिजात्मद्रव्यप्रकाशसूत्राध्ययनं च परमागमवाचनमित्यर्थः । णिद्दिठं उपकरणरूपेण निर्दिष्टं
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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