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________________ पवयणसारो ] [ ५२७ अथ तासां मोहादिबाहुल्यं दर्शयति ___ संति धुवं पमबाणं मोहपदोसा भयं दुगुच्छा य । चित्ते चित्ता माया तम्हा तासि पणिज्वाणं ।।२२४-४।। संति धुवं पमदाणं सन्ति विद्यन्ते ध्रुवं निश्चितं प्रमदानां स्त्रीणां । के ते? मोहपदोसा भयं बुगुच्छा य मोहादिरहितानन्तसुखादिगुणस्वरूपमोक्षकारणप्रतिबन्धकाः मोह द्वेपभयदुगुच्छापरिणामाः चित्ते चित्ता माया कौटिल्यादिरहितपरमबोधादिपरिणतेः प्रतिपक्षभूता चित्ते मनसि चित्रा विचित्रा माया तम्हा तासि | णिवाणं तत एव तासामन्यावाधसुखाद्यनन्तगुणाधारभूतं निर्णि नास्तीत्यभिप्रायः ॥४॥ उत्थानिका--आगे कहते हैं कि स्त्रियों के मोह आदि भावों की अधिकता है अन्वय सहित विशेषार्थ-(पमदाणं चित्ते) स्त्रियों के चित्त में (धुवं) निश्चय से (मोहपदोसा भयं दुर्गच्छा य) मोह, द्वेष, भय, ग्लानि तथा (चित्ता माया) चित्त में माया (संति) होती है (तम्हा) इसलिये (तासि ण णिवाणं) उनके निर्वाण नहीं होता है। निश्चय से स्त्रियों के मन में मोहावि रहित च अनन्तसुख भादि गुण स्वरूप मोक्ष के कारण को रोकने वाले मोह, द्वेष, भय, ग्लानि के परिणाम पाए जाते हैं तथा उनमें कुटिलता आदि से रहित उत्कृष्ट ज्ञान की परिणति की विरोधी नाना प्रकार की माया होती है। इसीलिये ही उनको बाधारहित अनन्तसुख आदि अनन्तगुणों का आधारभूत मोक्ष नहीं हो सकता है, यह अभिप्राय है ॥२२४-४॥ अर्थतदेव दृढयति ण विणा वट्टवि णारी एक वा तेसु जीवलोयम्हि । ण हि संउड च गतं तम्हा तासि च संवरणं ॥२२४-५॥ न विणा वट्टदि णारी न विना वर्तते नारी एककं वा तेसु जीवलोयम्हि तेषु निर्दोषिपरमात्मध्यानविघातकेषु पूर्वोक्तदोषेषु मध्ये जीबलोके त्वेकमपि दोषं विहाय ण हि संजई च गत्तं न हि स्फुटं संवृतं गात्रं च शरीरं तम्हा तासि च संवरणं तत एव च तासां संवरणं वस्त्रावरणं क्रियत इति ॥५॥ उत्थानिका और भी उसी को दृढ़ करते हैं--- अन्वय सहित विशेषार्थ-(जीवलोयम्हि) इस जीव लोक में (तेसु एक्कं विणा घा) इन दोषों में से एक भी दोष के बिना (णारी ण बट्टदि) स्त्री नहीं पाई जाती हैं (ण हि संउडं च गत्तं) न उनका शरीर ही संकोचरूप या दृढ़तारूप होता है (तम्हा) इसलिये (तासि च संवरणं) उनको वस्त्र का आवरण उचित है इस जीव लोक में ऐसी कोई भी स्त्री नहीं है जिसके ऊपर कहे हुए निर्दोष परमात्म ध्यान के घात करने वाले दोषों के
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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