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________________ ५२६ 1 | पवयणसारो अथ परिहारमाह पिच्छयदो इत्थीणं सिद्धीण हितेण जम्मणा विट्ठा । तम्हा तप्पडिहवं वियप्पियं लिंगमित्थीणं ॥२२४-२॥ गिच्छयदो इत्थीण सिद्धी ण हि तेण जम्मणा दिठ्ठा निश्चयतः स्त्रीणां नरकादिगतिविलक्षणानन्तसुखादिगुणस्वभावा तेनैव जन्मना सिद्धिर्न दृष्टा न कथिता । तम्हा तप्पडिख्यं तस्मात्कारणाप्रतियोग्यं सावरणरूपं वियप्पियं लिंगमिस्थोणं निर्ग्रन्थलिङ्गात्पृथक्त्वेन विकल्पितं कथितं लिङ्ग प्रावरणसहितं चिन्हं । कासां? स्त्रीणामिति ।।२२४-२॥ उत्थानिका-इसी प्रश्न का आगे समाधान करते हैं। अन्वय सहित विशेषार्थ—(णिच्छयदो) वास्तव में (तेण जम्मणा) उसी जन्म से (इत्थोणं सिद्धी) स्त्रियों को मोक्ष (ण हि बिट्ठा) नहीं देखा गया है (तम्हा) इसलिये (इत्योणं लिंग) स्त्रियों का भेष (तप्पडिरूव) आवरण सहित (विप्पियं) पृथक् कहा गया है । नरक आदि गतियों से विलक्षण अनंतसुख आदि गुणों के धारी सिद्ध को अवस्था की प्राप्ति निश्चय से स्त्रियों को उसी जन्म में नहीं कही गई है। इस कारण से उसके योग्य वस्त्र सहित भेष मुनि के निग्रंथ भेष से अलग कहा गया है ।।२२४-२॥ अथ स्त्रीणां मोक्षप्रतिबन्धकं प्रमादबाहुल्यं दर्शयति पइडोपमादमइया एदासि वित्ति भासिया पमदा। तम्हा ताओ पमदा पमादबहुलोत्ति णिद्दिच्छा ॥२२४-३॥ पइडोपमादमइया प्रकृत्या स्वभावेन प्रमादेन निवृत्ता प्रमादमयी । का कर्जी भवति ? एवासि वित्ति एतासां स्त्रीणां वृत्तिः परिणति: भासिया पमवा तत एब नाममालायां प्रमदाः प्रमदासंज्ञा भणिता भासिता: स्त्रियः । तम्हा ताओ पमदा तत एव प्रभदा संज्ञास्ता: स्त्रियः तस्मात्तत एव पमादबहुलोत्ति णिद्दिठा नि:प्रमादपरमात्मतत्त्वभावनाविनाशकप्रमादबहुला इति निर्दिष्टाः ॥३॥ उत्थानिका-आगे कहते हैं कि स्त्रियों के मोक्षमार्ग को रोकने वाले प्रमाद को बहुत प्रबलता है अन्वब सहित विशेषार्थ---(पाइडी) स्वभाव से (एतासि वित्ति) इन स्त्रियों की परिणति (पमाद्मइया) प्रमावमयी है (पमदा भासिया) इसलिये उनको प्रमदा कहा गया है (तम्हा) अतः (ताओ पमदा) वे स्त्रियाँ (पमादबहुलोत्ति णिविट्ठा) प्रमाद से भरी हुई हैं ऐसा कहा गया है। क्योंकि स्वभाव से उनका वर्तन प्रमादमयी होता है इसलिये नाममाला में उनको प्रमदा संज्ञा कही गई है। प्रमवा होने से ही उनमें प्रभाव रहित परमात्मतत्त्व को भावना के नाश करने वाले प्रमाद की बहुलता कही गई है ॥२२४-३।।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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