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________________ पवयणसारो ] [ ४४५ लोधादिद्रव्य स्थानीय मोहरागढ षैः कषायितो रञ्जितः परिणतो मजीष्ठस्थानीयकर्मपुद्गलः संश्लिष्टः सम्बद्धः सन् भेदेऽप्यभेदोपचारलक्षणेनासद्भूतव्यवहारेण बन्ध इत्यभिधीयते । कस्मात् ? अशुद्धद्रव्यनिरूपणार्थविषयत्वादसद्भूतव्यवहारनयस्येति ॥ १८८॥ उत्थानिका— आगे कहते हैं कि अभेदनय से बंध के कारणभूत रागादिभावों में परिणमन करने वाला आत्मा ही बंध के नाम से कहा जाता है । अन्वय सहित विशेषार्थ - ( सपदेसो सो अप्पा ) प्रदेशवान वह आत्मा ( मोह रागदोसेहिं कसायिदो) मोह राग द्वेषों से कषायला होता हुआ ( कम्मर एहि ) कर्मरूपी धूल से (सिलिट्ठी) लिपटा हुआ (बंधोत्ति) बंधरूप है, ऐसा ( समये परूदिदो ) आगम में कहा है । लोकाकाश प्रमाण असंख्यात प्रदेशों को अखंड रूप से रखने वाला यह आत्मा मोह भाव रहित अपने शुद्ध आत्मतत्व की भावना को रोकने वाले मोह राग द्वेष भावों से रंगा हुआ और कर्मवर्मणा योग्य पुद्गल रूपी धूल से बंधा हुआ, अमेदनय से आगम में बंधरूप कहा गया है। यहाँ यह अभिप्राय है कि जैसे वस्त्र लोध, फिटकरी आदि द्रव्यों से कषायला होकर मंजीठ आदि रंग से रंगा हुआ अभेदनय से लाल वस्त्र कहलाता है वंसे वस्त्र के स्थान में यह आत्मा लोधादि द्रव्य के स्थान में मोह राग द्वेषों से परिणमन करके मंजीठ के स्थान में कर्मपुद्गलों से बंधा हुआ वास्तव में कर्म से भिन्न है तो मी अभेदोपचार लक्षण असद्भूत व्यवहार से बंधरूप कहा जाता है, क्योंकि असद्भूत व्यवहारतय का विषय अशुद्ध द्रव्य है । अथ निश्चयव्यवहाराविरोधं दर्शयति- एसो बंधसमासो जीवाणं णिच्छयेण णिद्दिट्ठो । अरहंतेहि जदीणं ववहारो अण्णहा भणिदो ॥ १६६ ॥ एष बन्धसमासो जीवानां निश्चयेन निर्दिष्ट: । अद्धिती व्यवहारोज्न्यथा रामपरिणाम एवात्मनः कर्म, स एव पुण्यपापद्वैतम् । रागपरिणामस्यैवात्मा कर्ता तस्यैवोपादाता हाता चेत्येष शुद्धद्रव्यनिरुपणात्मको निश्वयतयः वस्तु पुद्गलपरिणाम आत्मनः कर्म स एव पुण्यपापद्वैतं पुद्गलपरिणामस्यात्मा कर्ता तस्योपादाता हाता चेति सोऽशुद्धद्रव्यनिरपणात्मको व्यवहारनयः । उभावप्येतौ स्तः, शुद्धाशुद्धत्वेनोभयथा द्रव्यस्य प्रतीयमानत्वात् । किन्त्वत्र निश्चयनयः साधकतमत्वादुपात्तः, साध्यस्य हि शुद्धत्वेन द्रव्यस्य शुद्धत्व द्योतकत्वान्निश्चयनय एव साधकतमो न पुनरशुद्धत्वद्योतको व्यवहारनयः ॥ १६६ ॥ भणितः || १८६ ।।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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