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[ पत्रयणसारो (दुक्खक्खयकारणं) संसार के दुःखों के क्षय का कारण भाव है ऐसा (समये) परमागम में कहा है। अपने शुद्धात्मा से भिन्न सर्व शुभ व अशुभ द्रव्य हैं। इन द्रव्यों के सम्बन्ध में रहता हुआ जो शुभमाय है वह पुण्य है और जो अशुभभाव है वह पाप है तथा शुद्धोपयोगरूप भाव मोक्ष का कारण होने से शुद्धभाव है ऐसा परमागम में कहा है अथवा ये भाव यथासंभव लब्धिकाल में होते हैं।
विस्तार यह है कि मिथ्यावृणिः, सा और मिश्र इन तीन गुणस्थानों में अर्थात् तारतम्य से कमती-कमती अशुभ परिणाम होता है ऐसा पहले कहा जा चुका है । अविरत सम्यक्त्व, देशविरत तथा प्रमत्तसंयत इन तीन गुणस्थानों में तारतम्य से शुम परिणाम कहा गया है तथा अप्रमत्त गुणस्थान से क्षीणकषाय नामक बारहवे गुणस्थान तक तारतम्य से शुद्धोपयोग ही कहा गया है। नय की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से क्षीणकषाय तक के गुणस्थानों में अशुद्ध निश्चयनय ही होता है। इस अशुद्ध निश्चय नय के विषय में शुद्धोपयोग कैसे प्राप्त होता है ऐसा पूर्वपक्ष शिष्य ने किया। उसका उसर देते हैं-वस्तु के एक देश की परीक्षा यह नय का लक्षण है। शुभ, अशुभ व शुद्ध द्रव्य के आलम्बनरूप भाव को शुभ, अशुभ व शुद्ध उपयोग कहते हैं। यह उपयोग का लक्षण है। इस कारण से अशुद्ध निश्चयनय के मध्य में भी शुद्धात्मा का आलम्बन होने से व शुद्ध ध्येय होने से वह शुद्ध का साधक होने से उपचार से शुद्धोपयोग परिणाम प्राप्त होता है। इस तरह नय का लक्षण और उपयोग का लक्षण यथासंभव सर्व जगह जानने योग्य है। यहां जो कोई रागावि विकल्प की उपाधि से रहित समाधि लक्षणमयी शद्धोपयोग को मुक्ति का कारण कहा गया है सो शुद्धात्मा द्रव्य लक्षण जो ध्येयरूप शुद्ध पारिणामिक भाव है उससे अभेद प्रधान द्रव्याथिकनय से अभिन्न होने पर भी भेवप्रधान पर्यायार्थिक नय से भिन्न है । इसका कारण यह है कि यह जो समाधिलक्षण शुद्धोपयोग है वह एकदेश आवरण रहित होने से क्षायोपमिक खंडज्ञान का व्यक्तिरूप है तथा वह शुद्धात्मारूप शुद्ध पारिणामिकभाव सर्व आवरण से रहित होने के कारण से अखंड ज्ञान का व्यक्तिरूप है। यह समाधिरूप भाव आदि व अन्त सहित होने से नाशवान है, वह शुद्ध पारिणामिकभाव अनादि व अनंत होने से अविनाशी है । यदि एकांत से अभेद हो तो जैसे घट की उत्पत्ति में मिट्टी के पिंड के नाश की तरह ध्यान पर्याय के नाश होने पर व मोक्ष अवस्था के उत्पन्न होने पर ध्येयरूप पारिणामिक का भी विनाश हो जायगा, सो ऐसा है नहीं । मिट्टी के पिंड से जैसे घट अवस्था की अपेक्षा भेद है मिट्टी की अपेक्षा अभेद है बसे ध्यान पर्याय