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________________ ४०६ । पक्यणसारो भूमिका-अब, यह निश्चित करते हैं कि आत्मा पुद्गलपिण्डों को कर्मरूप नहीं करता-- अन्वयार्थ-- [कर्मत्वप्रायोग्याः स्कंधाः] कर्मत्व के योग्य स्कंध [जीवस्य परिणतिप्राप्य] जीव की परिणति को प्राप्त करके (जीव के विभाव भावों के निमित्त से) [कर्मभावं गच्छन्ति] कर्मभाव को प्राप्त होते हैं, [न हि ते जीवेन परिणमिताः] वे जीव के द्वारा परिणमाये नहीं जाते हैं। टीका-कि तुल्य (समान) क्षेत्रावगाह वाले तथा कर्मरूप परिणमित होने की शक्ति वाले पुद्गलस्कंध, बहिरंगसाधनभूत जीव के परिणाममात्र का आश्रय लेकर, जीय परिणमाने वाला नहीं होने पर भी स्वयमेव कर्मभाव से परिणमित होते हैं, इसलिये निश्चित होता है कि प्रदगलपिण्डों को कर्मरूप करने वाला आत्मा नहीं है ॥१६॥ तात्पर्यवृत्ति अथ कर्मस्कन्धानां जीव उपादानकर्ता न भवतीति प्रज्ञापयति कम्मसणपाओग्गा खंधा कर्मत्वप्रायोग्या: स्कन्धाः कर्तारः जीवस्स परिणई पप्पा जीवस्य परिणति प्राप्य निर्दोषिपरमात्मभावनोत्पन्नसहजानन्दकलक्षणसुखामृतपरिणतेः प्रतिपक्षभूतां जीवसम्बन्धिनी मिथ्यात्वरागादिपरिणति प्राप्य गच्छति कम्ममायं गच्छन्ति परिणमन्ति । कं ? कर्मभावं ज्ञानावरणादिद्रव्यकर्मपर्यायं ण हि ते जीवेण परिणमिवा न हि नैव ते कर्मस्कन्धा जीवेनोपादानकर्तृभूतेन परिणमिताः परिणति नीता इत्यर्थः । अनेन व्याख्याने तदुक्तं भवति कर्मस्कन्धानां निश्चयेन जीवः कर्त्ता न भवतीति ॥१६६।। उत्थानिका-आगे फिर भी कहते हैं कि यह जीव कर्म स्कंधों का उपादानकर्ता नहीं होता है । __अन्वय सहित विशेषार्थ-(कम्मत्तण पाओग्गा) कर्मरूप होने को योग्य (खंधा) पुद्गल के स्कंध (जीवस्स परिणई) जीव की परिणति को (पप्पा) पाकर (कम्मभाचं) फर्मपने को (गच्छति) प्राप्त हो जाते हैं (दु) परन्तु (जीवेण) जीव के द्वारा (ते ण परिणमिदा) वे कर्म नहीं परिणमाए गए हैं। निर्दोष परमात्मा की भावना से उत्पन्न स्वाभाविक आनन्दमयी एक लक्षणस्वरूप सुखामृत की परिणति से विरोधी मिथ्यादर्शन, राग द्वेष आदि भावों की परिणति को जब यह जीव प्राप्त होता है तब इसके भावों का निमित्त पाकर वे कर्म योग्य पुद्गल स्कंध आप ही जीव के उपावानकारण के बिना ज्ञानावरणादि आठ या सात द्रव्य कर्मरूप हो जाते हैं। उन कर्म स्कंधों को जीव अपने उपादानपने से
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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