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________________ पवयणसारो 1 [ ३७५ अथानंतर इक्यावन गाथाओं तक विशेष भेद की भावना का अधिकार कहा जाता है, यहां विशेष अन्तर अधिकार चार हैं। उन चारों के बीच में शुद्ध आदि तीन उपयोग की मुख्यता से ग्यारह गाथाओं तक पहला विशेष अन्तर अधिकार प्रारम्भ किया जाता है, उसमें चार स्थल हैं। पहले स्थल में मनुष्यादि पर्यायों के साथ शुद्धात्म स्वरूप का भिन्नपना बताने के लिये "अस्थित णिच्छिदस्सहि" इत्यादि यथाक्रम से तीन गाथाएं हैं। उसके पीछे उनके संयोग का कारण "अप्पा उवओगप्पा" इत्यादि दो गाथाएं हैं। फिर शुभ, अशुभ, शुद्ध उपयोग तीन की सूचना की मुख्यता से "जो जाणादि जिणिदे" इत्यादि गाथा तीन हैं । फिर मन वचन काय का शुद्धात्मा के साथ भेद है, ऐसा कहते इत्यादि तीन गाथाएं हैं । इस तरह ११ गाथाओं से पहले विशेष समुदायपातनिका है । अथ पुनरप्यात्मनोऽत्यन्तविभक्तत्वसिद्धये गति विशिष्ट व्यवहार जीवत्व हेतु पर्यायस्वरूपमुपवर्णयति हुये " णाहं देहो " अन्तर अधिकार में अत्थित्तणिच्छिवस्स हि अत्यस्सत्यंत रम्हि संभूदो । अत्थो पज्जाओ सो संठाणाविप्पभेदेहि ।।१५२।। अस्तित्व निश्चितस्य ह्यर्थस्यार्थान्तरे संभूतः । अर्थः पर्यायः स संस्थानादिप्रभेदः । १५२ ।। स्वलक्षणभूतस्वरूपास्तित्वनिश्चितस्यैकस्यार्थस्य स्वलक्षणभूतस्वरूपास्तित्वनिश्चित एवान्यस्मिन्नर्थे विशिष्टरूपतया संभाषितात्मलाभोऽर्थोऽनेकद्रव्यात्मकः पर्यायः । स खलु पुद्गलस्य पुद्गलान्तर इव जीवस्य पुद्गले संस्थानादिविशिष्टतया समुपजायमानः संभाव्यत एव । उपपन्नश्चैवंविधः पर्यायः । अनेकद्रव्यसंयोगात्मत्वेन केवल जीवव्यतिरेकमात्रस्यैकद्रव्यपर्यायस्यास्खलितस्यान्तरयभासनात् ॥ १५२ ॥ भूमिका – अब, फिर भी, आत्मा की अत्यन्त विभक्तता सिद्ध करने के लिये, व्यवहार जीवत्व की हेतुभूत गतिविशिष्ट (देव मनुष्यादि) पर्यायों का स्वरूप कहते हैंअन्वयार्थ – [ अस्तित्व निश्चितस्य अर्थस्य हि ] ( अपने सहज स्वभावरूप ) अस्तित्व से निश्चित अर्थ ( द्रव्य) का [ अर्थान्तरे संभूतः ] अन्य अर्थ में उत्पत्ति रूप [ अर्थः ] अर्थ ( भाव ) [ पर्याय: ] पर्याय हैं, [ स ] वह (पर्याय ) [ संस्थानादिप्रभेदः ] संस्थानादि भेदों सहित है । १. अत्थस्सत्यंतर म्मि (ज० वृ० ) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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