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________________ ३५६ ] [ पवयणसारो तात्पर्य वृत्ति अथ समयसन्तानरूपस्योर्ध्वत्रच यस्यान्वयिरूपेणाधारभूतं कालद्रव्यं व्यवस्थापयति — उप्पादी पद्धसो विज्जदि जदि उत्पाद: प्रध्वंसो विद्यते यदि चेत् । कस्य । जस्स यस्य कालाणोः । क्व ? एकसमयहि एकसमये वर्तमानसमये समयस्स समयोत्पादकत्वात्समयः कालाणुस्तस्य सोवि समओ सोऽपि कालाणुः सहावसमवट्ठिदो हवदि स्वभावसमवस्थितो भवति । पूर्वोक्तमुत्पादप्रध्वंसद्वयं तदाधारभूतं कालाजुद्रव्यरूपं धौव्यमिति त्रयात्मकस्वभावसत्ता स्तित्वमिति यावत् । तत्र सम्यगवस्थितः स्वभाव: समवस्थितो भवति । तथाहि-- यथांगुलिद्रव्ये यस्मिन्नेव वर्तमानक्षणे वक्रपर्यायस्योत्पादस्तस्मिन्नेव क्षणे तस्यैबांगुलिद्रव्यस्य पूर्वर्जुपर्यायेण प्रध्वंसस्तदाधारभूतांगुलिद्रव्यत्वेन धौव्यमिति द्रव्यसिद्धिः । अथवा स्वस्वभावरूपसुखेनोत्पादस्तस्मिन्नेव क्षणे तस्यैवात्मद्रव्यस्य पूर्वानुभूताकुलत्वदुःखरूपेण प्रध्वंसस्तदुभयाधारभूतपरमात्मद्रव्यत्वेन धौव्यमिति द्रव्यसिद्धिः । अथवा मोक्षपर्यायरूपेणोत्पादस्तस्मिन्नेव क्षणे रत्नत्रयात्मकनिश्चयमोक्षमार्गपर्यायरूपेण प्रध्वंसस्तदुभयाधारपरमात्मद्रव्यत्वेन धौत्र्यमिति व्यसिद्धिः वर्तमानरूपपर्यायेणोत्पादस्तस्मिन्नेव क्षणे तस्यैव काला द्रव्यस्य पूर्वसमयरूपपर्यायेण प्रध्वंसस्तदुभयाधारभूतांगुलिद्रव्यस्थानीयेन कालाणुद्रव्यरूपेण धाव्यमिति कालद्रव्यसिद्धिरित्यर्थः ।। १४२ ।। उत्थानिका- आगे समय - संतानरूप ऊर्ध्वं प्रत्रय के अन्वयी रूप से आधारभूत काल द्रव्य को स्थापन करते हैं अन्वय सहित विशेषार्थ - ( जस्स समयस्स) समयरूप पर्याय को उत्पन्न करने वाले जिस कालाणु द्रव्य का ( एक समयम्हि ) एक वर्तमान समय में (जदि) जो (उप्पादो) उत्पाद तथा ( पद्धसो ) नाश (विज्जदि) होता है ( सो वि समओ) सो हो काल पदार्थ ( सहावसमवट्ठिदो हवदि ) अपने स्वभाव में भले प्रकार स्थिर रहता है । काला द्रव्य में पहली समय रूप पर्याय का नाश नयी समय रूप पर्याय का उत्पाद जिस वर्तमान समय में होता है, उसी समय इन दोनों उत्पाद और नाश का आधाररूप कालानुरूप द्रव्य ध्रौव्य रहता है । इस तरह उत्पाद व्यय धौव्यरूप त्रयात्मक स्वभावमयो सत्तारूप अस्तित्व इस काल द्रव्य का भले प्रकार सिद्ध है । भले प्रकार अवस्थित स्वभाव वाला समवस्थित है । जैसे एक हाथ की अंगुली को टेढा करते हुए जिस वर्तमान क्षण में ही वक्र अवस्था का उत्पाद हुआ है उसी हो क्षण में उसी हो अंगुली द्रव्य की पहली सीधीपने की पर्याय का नाश हुआ है परन्तु इन दोनों की आधारभूत अंगुली द्रव्य धौव्य है। इस तरह द्रव्य की सिद्धि होती है । अथवा जिस किसी आत्मद्रव्य में अपने स्वभावमयी सुख का जिस क्षण में उत्पाद है उसी ही क्षण में उसके पूर्व अनुभव होने वाले आकुलता रूप दुःख पर्याय का नाश है परन्तु इन दोनों के आधारभूत परमात्म-द्रव्य का धौव्य है । इस तरह द्रव्य की सिद्धि है । अथवा एक आत्मद्रव्य में जिस समय मोक्ष पर्याय का उत्पाद है उस ही
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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