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________________ पवयणसारो । [ २७५ मावो द्रव्यत्वभावो द्रव्यत्त्वमस्तित्वं । तत्पुनः कि भगवते ? भावः । कोऽर्थः ? उत्पादव्ययधौव्यात्मकसद्भावः तम्हा दववं सयं सत्ता तस्मादभेदनयेन सत्ता स्वयमेव द्रव्यं भवतीति । तद्यथा--मुक्तात्मद्रव्ये परमावाप्तिरूपो मोक्षपर्यायः केवलज्ञानादिरूपो गुणसपूहश्च येन कारशेन तद्वयमपि परमात्मद्रव्यं विना नास्ति न विद्यते । कस्मात्प्रदेशाभेदादिति ? उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक शुद्धसत्तारूपं मुक्तात्मद्रव्यं भवति । तस्मादभेदेन सर्वत्र द्रव्यमित्यर्थः । यथा मुक्तात्मद्रव्ये गुणपर्यायाभ्यां सहाभेदव्याख्यानं कृतं तथा यथासम्भव सर्वद्रव्येषु ज्ञातव्यमिति ॥११०॥ एवं गुणगुणिव्याख्यानरूपेण प्रथमगाथा द्रव्यस्य गुणपर्यायाभ्यां सह भेदो नारतीति कथनरूपेणद्वितीया चेति स्वतन्त्रगाथाद्वयेन पष्ठस्थलं गतम् । उत्थानिका-आगे गण और पर्यायों से द्रव्य का अभेद दिखलाते हैं अन्वय सहित विशेषार्थ-(इह) इस जगत् में (दव्वं विणा) द्रव्य के बिना कोई (गणो त्ति पजाओ तिथि) न कोई गुण होता है न कोई पर्याय होती है (पुण वध्वत्तं भावो) तथा ग्यपना या उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप से परिणमनपना द्रव्य का स्वभाव है (तम्हा दच्वं सयं सत्ता) इसलिये द्रव्य स्वयं सत्ता रूप है। मुक्तात्मा द्रव्य में केवलज्ञानादि रूप गुणों के समूह तथा परम पद की ...प्राति रूप मोक्ष पर्याय ये दोनों ही परमात्मा द्रव्य के बिना नहीं पाए जाते क्योंकि गुण और पर्यायों का द्रव्य के प्रदेशों से भेद नहीं है किन्तु एकत्त्य है तथा मुक्तात्मा द्रव्य उत्पाद म प्रोग्यमयी शुद्ध सत्तास्वरूप है। इसलिये अभेदनय से सत्ता ही द्रव्य है या द्रव्य ही ससा है। जैसे मुक्तात्मा द्रव्य में गुणपर्यापों के साथ अभेद व्याख्यान किया तैसे यथा सम्भव सर्व प्रध्यों में जान लेना चाहिये ॥११०॥ इस तरह गुण और गुणी का व्याख्यान करते हुए प्रथम गाथा तथा इन्य का अपने गुण व पर्यायों से भेद नहीं है ऐसा कहते हुए दूसरी गाथा इस तरह स्वतन्त्र वो माधाओं से छठा स्थल पूर्ण हुआ। भय द्रव्यस्य सदुत्पादासत्पादयोरविरोधं साधयति एवंविहं 'सहावे दव्वं दश्वत्यपज्जयहिं । सदसम्भावणिबद्ध पादुखभावं सदा' लभदि ॥१११॥ एवंविधं स्वभावे द्रव्यं द्रव्यार्थपर्यायार्थाभ्याम् । सदसद्भावनिबद्धं प्रादुर्भाव सदा लभते ॥१११११ एवमेतद्यथोवितप्रकारसाकल्याकलङ्कलाञ्छनमनादिनिधनं सत्स्वभाचे प्रादुर्भावमास्कपति द्रव्यम् । स तु प्रादुर्भावो द्रव्यस्य द्रन्याभिधेयतायां सद्भावनिबद्ध एवं स्यात् । पर्या १. एवं बिहसम्भावे (ज० वृ०)। २. सया (ज० व्०)। ३, लहदि (ज० वृ०)।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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