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________________ २४८ ] [ पवयणसारं मिथ्यात्वपर्याय के भंगरूप सम्यक्त्व के उपादानकारण के अभाव में शुद्धात्मा की अनुभूति की वधि रूप सम्यक्त्व का उत्पाद हो जाये तो उपादानकारण से रहित आकाश के पुष्पं का भी उत्पाद हो जावे सो ऐसा नहीं हो सकता है। इसी तरह पर-द्रव्य उपादेय हैग्राह्य है, ऐसे मिथ्यात्व का नाश पूर्व में कहे हुए सम्यक्त्व पर्याय के उत्पाद विना नह होता है क्योंकि भंग के कारण का अभाव होने से भंग नहीं बनेगा जैसे घटको उत्पत्ति के अभाव में मिट्टी के पिड का नाश नहीं बनेगा। दूसरा कारण यह है कि सम्यक्त्व रूप पर्याग की उत्पति त्मिक पर्याय के नाम रूप से ही देखने में आती है क्योंकि एक पर्याय का अन्य पर्याय में पलटना होता है। जैसे घट पर्याय की उत्पत्ति मिट्टी के पिंड के अभाव रूप से ही होती है। यदि सम्यक्त्व की उत्पत्ति की अपेक्षा के बिना मिथ्यात्व पर्याय का अभाव होता है, ऐसा माना जाय तो मिथ्यात्वपर्याय का अभाव हो ही नहीं सकता क्योंकि अभाव के कारण का अभाव है अर्थात् उत्पाद नहीं है। जैसे घट की उत्पत्ति के बिना मिट्टी के पिंड का अभाव नहीं हो सकता इसी तरह परमात्मा की रुचि. रूप सम्यक्त्व का उत्पाद तथा उससे विपरीत मिथ्यात्वपर्याय का नाश ये दोनों बातें इन नोनों के आधारभूत परमात्म-रूप द्रव्य पदार्थ के बिना नहीं होती। क्योंकि द्रव्य के अभाव में व्यय और उत्पाद का अभाव है। मिट्टो द्रव्य के अभाव होने पर न घट की उत्पत्ति होती है, न मिट्री के पिंड का भंग होता है। जैसे सम्यक्त्व और मिथ्यात्वपर्याय दोनों में परस्पर अपेक्षापना है ऐसा समानकर ही उत्पाद व्यय प्रोग्य तीनों दिखलाए गए हैं। इसी तरह सर्व द्रव्य को पर्यायों में देख लेना व विचार लेना चाहिये, ऐसा अर्थ है ॥१०॥ अयोत्पादादीनां द्रक्ष्यावन्तिरत्वं संहति उत्पावदिदिभंगा विज्जते पज्जएसु पज्जाया। बव्वे हि संति णियदं तम्हा दव्वं हवदि सव्वं ॥१०१॥ उत्पादस्थितिभङ्गा विश्चन्ते पययिषु पर्याः । द्रव्ये हि सन्ति नियतं तस्माद्रव्यं भवति सर्वम् ।।१०१।। उत्पादव्ययात्रौव्याणि हि पर्यायानालम्बन्ते, ते पुन: पर्याया द्रव्यमालम्बन्ते । ततः समस्तमप्येतदेकमेव द्रव्यं न पुनद्रव्यान्तरम् । द्रव्यं हि तावत्पर्यायरालम्च्यते । समुदायिनः समुदायात्मकत्वात् पादपवत् । यथा हि समुदायो पारपः स्कन्धमूलशाखासमुदायात्मकः १. दबं (ज० व०)। - --.. __ - - -.. -
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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