SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४४ ] [ पवयणसारो शुद्ध उपादान रूप सर्व रागादि के विकल्प की उपाधि से रहित स्वसंवेदन ज्ञान पर्याय का नाश तथा उसी समय इन दोनों उत्पाद व्यय के आधार रूप परमात्मद्रव्य की स्थिति इस तरह उत्पाद व्यय धौच्य सम्बन्धी जो परिणाम है वही निश्चय से उस परमात्म द्रव्य का केवलज्ञानादि गुण वा सिद्धत्व आदि पर्याय रूप स्वभाव है । गुण पर्याय द्रव्य के स्वभाव हैं इसलिये उनको अर्थ कहते हैं । इस तरह उत्पाद व्यय धौव्य इन तीन स्वभाव से एक समय में यद्यपि पर्यायार्थिकनय से परमात्म द्रव्य परिणमन करते हैं तथापि द्रव्यार्थिकनय से सत्ता लक्षण रूप ही हैं। तीन लक्षण रूप होते हुये भी सत्ता लक्षण क्यों कहते हैं ? इसका समाधान यह है कि सत्ता उत्पाद व्यय धौव्य स्वरूप है । जंसा कहा है "उत्पादव्ययश्रव्ययुक्तं सत्" जैसे यह परमात्म द्रव्य एक समय में हो उत्पाद व्यय श्रीव्य से परिणमन करता हुआ हो सत्ता लक्षण कहा जाता है तैसे ही सर्व द्रव्यों का स्वभाव है, यह अर्थ है ॥६६॥ कहते हुए दूसरी है इस तरह स्वरूप सत्ता को कहते हुये प्रथम गाथा, महासत्ता को गाथा, जैसे द्रव्य स्वतः सिद्ध है वैसे उसकी सत्ता गुण भी स्वतः सिद्ध तीसरी गाथा, उत्पाद व्यय धौम्य उप होते हुये ही सत्ता हो को गाथा इस तरह चार गाथाओं के द्वारा सत्ता लक्षण के व्याख्यान की मुख्यता करके बूसरा स्थल पूर्ण हुआ । ऐसा कहते हुये कहते हुये चौथी अथोत्पादव्ययव्याणां परस्पराविनाभावं दृढ़यति - ण भवो भंग विहोणो भंगो वा णत्थि संभवविहीणो । उप्पादो वि य भंगो ण विणा धोव्वेण' अत्येण ॥१००॥ न भवो भङ्गविहीन भङ्गो वा नास्ति संभवविहीनः । उत्पादोऽपि च भङ्गो न विना धाव्येणार्थेन ॥ १०० ॥ न खलु सर्गः संहारमन्तरेण न संहारो वा सर्वमन्तरेण न सृष्टिसंहारो स्थितिमन्तरेण, न स्थितिः सर्गसंहारमन्तरेण । य एव हि सर्गः स एव संहारः य एव संहारः स एव सर्गः यावेव सर्गसंहारो सैव स्थितिः, यैव स्थितिस्तायेव सर्गसंहाराविति । तथाहिय एव कुम्भस्य सर्गः स एव मृत्पिण्डस्य संहारः, भावस्य भावान्तराभावस्वभावेनावभासनात् । य एव च मृत्पिण्डस्य संहारः, स एव कुम्भस्य सर्गः, अभावस्य भावान्तरभा वस्त्रभावेनावभा सनात् । यो च कुम्भपिण्डयोः सर्गसंहारो सैव मृत्तिकायाः स्थितिः, व्यतिरेकमुखेनैवान्वयस्य १. दव्वेण (ज० वृ० ) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy