SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३२ ] [ पवयणसारो ध्रौपाणां सद्भावः, तथा स्वद्रव्यादिचतुष्टयेन मोक्षपर्यायोत्पादमोक्षमार्गपर्यायव्ययतदुभयाधारभूतमुक्तात्मद्रव्यत्वलक्षणध्रौव्येभ्य: सकाशादभिन्नस्य परमात्मद्र व्यस्य संबन्धि यदस्तित्वं स एव मोक्षपर्यायोत्पादमोक्षमार्गपर्यायव्ययतदुभयाधारभूतमुक्तात्मद्रव्यत्वलक्षणधोयाणां स्वभाव इति ! एवं यथा गुरुसाव्यस्य स्वकीय सुगमनीयात्वादध्ययनोव्यः सह स्वरूपास्तित्वाभिधानमवान्तरास्तित्वमभिन्न व्यवस्थापितं, तथैव समस्तशंषद्रव्याणामपि व्यवस्थापनीयमित्यर्थः ।।६६।। उत्थानिका-आगे अस्तित्त्व या सत् के दो प्रकार अस्तित्व में से स्वरूप अस्तित्व को बताते हैं __ अन्वय सहित विशेषार्थ---(चित्तेहि गुणेहि सहपज्जएहि) नाना प्रकार के अपने गुण और अपनी पर्यायों के साथ सिद्ध जीव की अपेक्षा से अपने केवलझान आदि गुण तथा अंतिम शरीर से कुछ कम आकार रूप अपनी पर्याय तथा सिद्ध गतिपना, अतीन्द्रियपना, कायरहितपना, योगरहितपना, वेदरहितपना इत्यादि नाना प्रकार की अपनी अवस्थाओं के साथ और (उप्पादम्बयधुबत्तेहि) उत्पाद व्यय नोव्यपने के साथ सिद्ध जीव की अपेक्षा से शुद्ध आत्मा की प्राप्ति रूप मोक्ष पर्याय का उत्पाद, रागद्वेषादि विकल्पों से रहित परमसमाधि रूप मोक्ष मार्ग की पर्याय का व्यय तथा मोक्षमार्ग और मोक्ष के आधारभूत चले आने वाले द्रव्यपने का लक्षणरूप धौव्यपना इन तीन प्रकार उत्पाद व्यय प्रौव्य के साथ (वश्वस्स) द्रव्य का अर्थात् मुक्तात्मा रूपी द्रव्य का (सन्वकाल) सर्व कालों में अर्थात् सदा ही (सब्भावो) शुद्ध अस्तित्व है या उसको शुद्ध सत्ता है (हि) सो ही निश्चय करके (सहावो) उसका निज भाव या निज रूप है, क्योंकि मुक्तात्मा इनके साथ अभिन्न हैं इसका हेतु यह है कि गुण पर्यायों के अस्तित्त्व से तथा उत्पाद व्यय धौन्यपने के अस्तित्त्व से ही शुद्ध आत्मा के द्रव्य का अस्तित्व साधा जाता है और शुद्ध आत्मा के द्रव्य के अस्तित्व से गुण पर्यायों का और उत्पाद व्यय प्रौव्यपने का अस्तित्व साधा जाता है। किस तरह परस्पर साधा जाता है सो बताते हैं जैसे स्वर्ण के पीतपना आदि गुण तथा कुंचल आदि पर्यायों का जो स्वर्ण के द्रव्य क्षेत्र काल माव की अपेक्षा स्वर्ण से भिन्न नहीं है, जो अस्तित्त्व है वहीं स्वर्ण का अपना अस्तित्त्व है या सद्भाव है । तैसे ही मुक्तात्मा के केवलज्ञान आदि गुण मौर अन्तिम शरीर से कुछ कम आकार आदि पर्यायों का जो मुक्तात्मा के द्रव्य क्षेत्र काल भावों की अपेक्षा परमात्मा-द्रव्य से भिन्न नहीं है, जो अस्तित्त्व है वही मुक्तात्मा द्रव्य का अपना अस्तित्त्व या सभाव है। और जैसे स्वर्ण के पीतपना आदि गुण और कंडल आदि पर्यायों के साथ जो स्वर्ण अपने द्रव्य क्षेत्र काल भावों की अपेक्षा अभिन्न हैं, उस स्वर्ण का जो अस्तित्त्व है वही पीतपना आदि गुण तथा
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy