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________________ २२४ ] [ पक्यण सारो द्रव्य का उन उत्पादादि के साथ अथवा गुणपर्यायों के साथ लक्ष्य-लक्षण भेद होने पर भी स्वरूप भेद नहीं है (सत्ता भेद नहीं है) स्वरूप से ही द्रव्य वैसा होने से (अर्थात् द्रश्य ही स्वयं उत्पादि रूप तथा गुणपर्यायरूप परिणमन करता है, इस कारण स्वरूप भेद नहीं है), वस्त्र के समान । ___ जैसे मलिन अवस्था को प्राप्त वस्त्र, धोने पर निर्मल अवस्था से उत्पन्न होता हुआ उस उत्पादरूप लक्षित होता (देखा जाता है, किन्तु उसका उस उत्पाद के साथ स्वरूप भेद (सत्ता भेद) नहीं है, स्वरूप से ही वैसा है (अर्थात् स्वयं उत्पादरूप से हो परिणत है), उसी प्रकार जिसने पूर्व अवस्था प्राप्त की है ऐसा द्रव्य भो-जो कि उचित बहिरंग साधनों के सान्निध्य के सद्भाव में अनेक प्रकार की बहुत सी अवस्थायें करता है-अन्तरंगसाधनभूत' स्वरूपकर्ता और स्वरूपकरण के सामर्थ्यरूप स्वभाव से अनुगृहीत (सहित) हुआ । अवस्था से उत्पन्न होता हुआ, उत्पादरूप लक्षित होता (देखा जाता) है, किन्तु उसका उस उत्पाद के साथ स्वरूप भेव (सत्ता भेद) नहीं है, स्वरूप से ही वैसा है और जैसे वही वस्त्र निर्मल अवस्था से उत्पन्न होता हु और मलिन अवस्था से प्यय को माया होता हुआ उस व्यय से लक्षित होता है, परन्तु उसका उस व्यय के साथ स्वरूप भेद नहीं है, स्वरूप से ही वैसा है, उसी प्रकार वहीं द्रव्य भी उत्तर अवस्था से उत्पन्न होता हुआ और पूर्व अवस्था से व्यय को प्राप्त होता हुआ उस व्यय से लक्षित होता है, परन्तु उसका उस व्यय के साथ स्वरूपभेव नहीं है, वह स्वरूप से ही वैसा है और जैसे वही वस्त्र एक ही समय में निर्मल अवस्था से उत्पन्न होता हुआ, मलिन अवस्था से व्यय को प्राप्त होता हुआ और टिकने वाली वस्त्रत्व-अवस्था से ध्रुव रहता हुआ धौष्य से लक्षित होता है, परन्तु उसका उस ध्रौव्य के साथ स्वरूप भेद नहीं है, स्वरूप से ही वैसा है, इसी प्रकार वही द्रव्य भो एक ही समय उत्तर अवस्था से उत्पन्न होता हुआ, पूर्व अवस्था से व्यय होता हुआ, और टिकने वाली द्रव्यत्य अवस्था से घुष रहता हुआ ध्रौव्य से लक्षित होता है। किन्तु उसका उस नौच्य के साथ स्वरूप भेद नहीं है, वह स्वरूप से ही बंसा है और जैसे वही स्त्र विस्तारविशेषस्वरूप (शुक्लत्वादि) गुणों से लक्षित होता है, किन्तु उसका उन पुणों के साथ स्वरूपभेद नहीं है, स्वरूप से ही वैसा है, इसी प्रकार बही द्रव्य भी विस्तारविशेषस्वरूप गुणों से लक्षित होता है, किन्तु उसका उन गुणों के साथ स्वरूप भेद नहीं है, वह --- १. ट्रच्य में निज में ही स्वरूपकर्ता और स्वरूपकरण होने की सामर्थ्य है। यह सामर्थ्य स्वरूप स्वभाव ही अपने परिणमन में (अवस्थान्तर करने में) अन्तरंग साधन है ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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