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( २६ ) गाथा संख्या
विषय
पृष्ठ संख्या साधु के आगमचक्षु हैं, सर्व प्राणी के इन्द्रियचक्षु हैं, देवों के अवधिचक्षु हैं सिद्धों के सर्वतः चक्षु है
५६०-६२ विचित्र गुण पर्यायों सहित समस्त पदार्थ आगम सिद्ध हैं, परोक्ष रूप आगम केवलज्ञान के समान है
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मोक्ष-मार्ग जिसकी आगम परक दृष्टि नहीं है उसके संयम नहीं है यदि आगम के द्वारा पदार्थों का श्रद्धान नहीं किया तो मुक्ति नहीं होती संयमशून्य ज्ञान श्रद्धान से सिद्धि नहीं होती इससे आगम ज्ञानतत्त्वार्थं श्रद्धान संयतत्व के युगपत् बिना मोक्षमार्ग नहीं है चिदानन्नपय एक स्वभान हर सपने परमात्म आदि पदार्थों का श्रद्धान करता हुआ भी यदि असंयमी रहता है तो भी निर्वाण नहीं। दीपक के दृष्टान्त द्वारा बतलाया कि यदि चारित्र के बल से असंयम से नहीं हटता तो श्रद्धान ज्ञान क्या हित कर सकता है अज्ञानी जो कर्म लक्षकोटि भवों में खपाता है वह ज्ञानी गुप्ति द्वारा उच्छ्वास मात्र में क्षय कर देता है परमागम ज्ञान, तत्त्वार्थ श्रद्धान तथा संयम इन भेदरत्नत्रय के मिलाप होने पर भी जो अभेदरत्नत्रय स्वरूप निर्विकल्पसमाधिमय आत्मज्ञान है वही निश्चय से मोक्ष का कारण है निर्विकल्पसमाधि रूप निश्चयरत्नत्रयमयी विशेष भेदज्ञान को न पाकर अज्ञानी (समाधि-रहित सम्यग्दृष्टि) जीव करोड़ों जन्मों में जिस कर्म को क्षय करता है उस कर्म को (निर्विकल्पसमाधि में स्थित) ज्ञानी जीब तीन गुप्ति द्वारा उचछयास मात्र में नाश कर डालता है सर्व आगमज्ञान होने पर भी यदि शरीर आदि के प्रति स्तोक भी ममत्व है तो सिद्ध पद को प्राप्त नहीं होता आत्मशानशून्य (निर्विकल्पसमाधि रहित) के आगमज्ञान तत्त्वार्थ श्रद्धान और संयम की युगपत्ता भी अकिचित्कर है त्याग, अनारम्भ विषयों से वैराग्य कषायों का क्षय, यह संयम है
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