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________________ पवयणसारों ] [ २१३ यथैव चानेकपटात्मको द्विपटिका त्रिपटिकेति समानजातीयो द्रव्यपर्यायः, तथैव चानेकपुद्गलात्मको घणुकस्यणुक इति समानजातीयो द्रव्यपर्यायः । यथैव चानेककौशेयककापाससमयपटात्मको द्विपटिकात्रिपटिकेत्यसमानजातीयो प्रथ्यपर्यायः, तथंव चानेकजीवपुद्गलात्मको देवो मनुष्य इत्यसमानजातीयो द्रव्यपर्यायः । यथैव च क्वचित्पटे स्थूलात्मीयागुरुलघुगणद्वारेण कालक्रमवृत्तेन नानाविधेन परिणमन्नानात्वप्रतिपत्तिर्गुणात्मकः स्वभावपर्यायः, तथंव च समस्तेष्वपि द्रव्येषु सूक्ष्मात्मीयागुरुलघुगुणद्वारेण प्रतिसमयसमुदीयमानषट्स्थानपतितवृद्धिहानिनानात्वानुभूति: गुणात्मकः स्वभावपर्यायः। यथैव च पटे रूपादीनां स्वपरप्रत्ययप्रवर्तमानपूर्वोत्तरावस्थावतीर्णतारतम्योपशितस्वभावविशेषानेकत्वापत्तिर्गुणात्मको विभावपर्यापः, तवं च समस्तेष्यपि द्रव्येषु रूपादीनां ज्ञानादीनां वा स्वपर प्रत्ययप्रवर्तमानपूर्वोत्तरावस्थावतीर्णतारतम्योपशितस्वभावविशेषानेकत्वापत्तिर्गुणात्मकोविभावपर्यायः इयं हि सर्वपदार्थानां द्रव्यगुणपर्यायस्वभावप्रकाशिका पारमेश्वरी व्यवस्था साधीयसी, न पुनरितरा। यतो हि बहवोऽपि पर्यायमात्रमेवावलम्ब्य तत्त्वाप्रतिपत्तिलक्षणं मोहमुपगच्छन्तः परसमया भवन्ति ॥ ३॥ भूमिका-अब जयतस्व का प्रज्ञापन करते हैं, अर्थात् ज्ञेयतत्त्व बतलाते हैं । उसमें (प्रथम हो) पदार्थ के द्रव्यगुणपर्याय के सम्यक् (यथार्थ) स्वरूप का वर्णन करते हैं: ___ अन्वयार्थ—[अर्थः खलु] पदार्थ वास्तव में [द्रव्यमयः] द्रव्यस्वरूप है, [द्रव्याणि] द्रव्य [गुणात्मकानि] गुणात्मक [भणितानि] कहें गये हैं; [तै: तु पुनः] और द्रव्य तथा गुणों से [पर्यायाः] पर्याय होती हैं। [पर्यायमूढाः हि] पर्यायमूढ जीब [परसमयाः] परसमय [मिथ्यादृष्टि) हैं। टीका-इस विश्व में वास्तव में जो कोई जानने में आने वाला पदार्थ है, वह समस्त ही विस्तारसामान्यसमुदायात्मक (गुणात्मक अर्थात् गुणों का समूह) और आयतसामान्यसमुदायात्मक (क्रमभावी पर्यायात्मक-पर्यायों का समूह) द्रव्य से रचित होने से व्रव्यमय है अर्थात् द्रव्य है और द्रव्य एक जिनका आश्रय हैं ऐसे विस्तार विशेष स्वरूप गुणों से रचित होने से, गुणात्मक है। पर्याय जो कि आयतधिशेष स्वरूप हैं, जिनके लक्षण (ऊपर) कहे गये हैं ऐसे वयों से, तया जिनके लक्षण ऊपर कहे गये ऐसे गुणों से रचित होने से—व्यात्मक भी हैं तथा गुणात्मक भी हैं । उनमें, अनेक द्रव्यात्मक एकता की प्रतिपत्ति को (ज्ञान कराने की) कारणभूत द्रव्यपर्याय है। वह दो प्रकार है। (१) समानजातीय (२) असमानजातीय।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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