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विषय
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( २७ ) गाथा संख्या
पृष्ठ संख्या २००/१ भव्य जीवो को चारित्र में प्रेरित करते हैं
चरणानुयोग सूचक चूलिका तृतीय अधिकार यदि दुःखों से मुक्त होने की इच्छा है तो यतिधर्म को अंगीकार करो, सासादन से क्षीण कषाय तक एक देश जिन हैं
४५६-७१ बंधुवर्ग से पूछकर तथा स्त्री पुत्रों से मुक्त होता हुआ पंचाचार को अंगीकार कर विरक्त होता है
४८०-८४ निश्चय पंचाचार का कथन
४८४ २०३-२०४ मुनि होने के इच्छुक की क्रिया २०५-२०६ बहिरंग और अंतरंग लिंग का स्वरूप
४८८-११ २०७ मुनिमार्ग में तिष्ठता हुआ वह मुमुक्ष मुनि हो जाता है
४६१-६४ २०८-२०६ २८ मूल गुणों का अर्थात् छेदोपस्थापनाचारित्र का कथन निश्चयनय से आत्मा के केवल ज्ञानादि गुण मुलगुण हैं
४६५-६७ २१० दीक्षा-आचार्य व निर्यापक-आचार्य
४९८-९ २११-६१२ अंतरंगछेद व बहिरंगछेद
४६६-५१ २१३ पर द्रव्य छेद का कारण है
५०२-०३ शुद्धात्मा में लीनता मुनिपद की पूर्णता का कारण है
५०३-०३ सूक्ष्म पर द्रव्य का सम्बन्ध श्रामण्य के छेद का कारण है दया का उपकरण पिच्छिका है।
५०५-०७ अयत्नाचार चर्या सतत हिंसा है
५०७-०८ जीव मरे या न मरे अयत्नाचार से हिंसा निश्चित है यत्नाचार में हिंसा मात्र से बंध नहीं
५०८-१० २१७:१२ ईयासमिति से चलने वाले मुनि के जीव के मरने पर भी बंध नहीं होता २१८ अयत्नाचारी के निरंतर बंध, यत्नाचारी निलेप
५११-१२ २१६ परिग्रह अशुभोपयोग के बिना नहीं होता अतः परिग्रह से बन्ध निश्चित है, ५१२-१४ वहिरंगपरिग्रह के सद्भाव में अंतरंगछेद का त्याग नहीं होता
५१४-१७ २२०/१-२ शुद्ध भाव पूर्वक बाहरी परिग्रह का त्याग ही अंतरंगपरिग्रह का त्याग है बाह्यपरिग्रह के सद्भाव में मूळ आरम्भ ब असंयम होते ही हैं,
५१६-२० 'असंयम' शुद्धात्मानुभूति से विलक्षण है जिन उपकरणों के ग्रहण करने से छेद नहीं होता उनके निषेध नहीं है विशिष्ट काल क्षेत्र के वश संयम के बहिरंग साधन भूत उपकरणों को ग्रहण करता है ५२०-२६