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________________ गाथा संख्या १८३ १८४ १८५ १८६ १८.७ १८७/१ १८८ ም ። १६१ १६२ १६३ ક १६५. ( २६ ) विषय जो इस प्रकार स्वभाव को प्राप्त करके स्व और पर को नहीं जानता वह अहंकार व भ्रमकार करता है आत्मा अपने भावों का कर्ता है पर भावों का कर्ता नहीं है, अशुद्ध निश्चय नय से रागादि भी स्वभाव है, क्योंकि ये भावकर्म हैं कर्मों के मध्य में रहता हुआ भी जीव कर्मों को उपादान रूप से न तो ग्रहण करता है और न छोड़ता है १६६ वद्य जीव अपने परिणामों का कर्ता है तथापि उन परिणामों के निमित्त से कर्मों से बंधता व छूटता है जब राग द्वेष युक्त शुभ अशुभ परिणाम होते हैं तब कर्म ज्ञानावरणादि रूप परिणम जाते हैं । कमों की विचित्रता पुगलकृत है, जीव कृत नहीं शुभ परिणामों से शुभप्रकृतियों का अनुभाग लीन होता है, अशुभप्रकृतियों का अनुभाग मन्द होता है। संक्लेश से अशुभप्रकृतियों का अनुभाग तोत्र शुभ का मन्द होता है मोह राग द्वेष से कषायला आत्मा कर्म से लिप्त होने से बन्ध रूप है निश्चयनय से आत्मा अपने भावों का कर्ता है, पुद्गलकर्मों का कर्ता व्यवहार नय से है । इन दोनों नयों में अविरोध है । परम्परा से शुद्धात्मा का साधक होने से अशुद्धय को भी उपचार से शुद्धनय कहते हैं। जो शरीर आदि में अहंकार ममकार नहीं छोड़ता वह उन्मार्गी हैं। मैं पर का नहीं, पर मेरा नहीं, मैं एक ज्ञायक स्वरूप हूँ ऐसा ध्यान करने वाला आत्मा का ध्याता है आत्मा ज्ञान-दर्शनात्मक, अतीन्द्रिय, ध्रुव, अचल, निरालम्ब और शुद्ध है । पर द्रव्य से भिन्नता और स्वधर्म से अभिनता यह शुद्धता है। शत्रु, मिश्र, सुख, दुख, शरीर धन आदि ध्रुव नहीं है । ध्रुव तो उपयोगात्मक आत्मा है जो ऐसी आत्मा को ध्याता है, वह मोह से छूट जाता है रागद्वेष मोह को क्षय करके सुख-दुःख में समता वाला मुनि अक्षय सौख्य को प्राप्त करता है। मोह का नाश करके विषय से विरक्त होकर स्वभाव में स्थित होने से आत्मा का ध्यान होता है ध्यान व ध्यान चिंतन का लक्षण १६९ १९७, १२८ केवल परम सौख्य को ध्याते है केवली के ध्यान उपचार से हैं। शुद्धात्मा की उपलब्धि ही मोक्ष मार्ग है पांचवी गाथा में की गई प्रतिज्ञा का निर्वाह निश्चय से शेय-ज्ञायक संबंध नहीं है २०० पृष्ठ संख्या ४३४-३६ ४६३-३८ ४३८. ३६ ४३६-४१ ४४१-४३ ४४४ ४४४-४५ ४४५.४८ ४४८-५० ४५०-५१ ४५२–५४ ४५४-५६ ४५६-५८ ४५८-५६ ४५६-६० ४६१-६२ ४६२-६७ ४६७. ६६ ४६९-७३
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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