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________________ १६६ ] [ पवयणसारो सैकड़ों ग्रन्थ जिनवाणी में हैं - इनका अभ्यास सदा हो उपयोगी है । सम्यक्त्व होने के पीछे सम्यक्चारित्र को पूर्णता व सम्यग्ज्ञान की पूर्णता के लिये भी जिनवाणी का अभ्यास कार्यकारी है । इस पंचम काल में तो इसका आलम्बन हर एक मुमुक्षु के लिये बहुत ही आवश्यक है क्योंकि यथार्थ उपदेष्टाओं का सम्बन्ध बहुत दुर्लभ है। जिनवाणी के पढ़ते रहने से एक मूढ मनुष्य भी ज्ञानी हो जाता है। आम हित के लिये यह अभ्यास परम उपयोगी है । स्वाध्याय के द्वारा आत्मा में ज्ञान प्रगट होता है, कषायभाव घटता है संसार से ममत्व हटता है, मोक्ष भाव से प्रेम जगता है। इसी के निरन्तर अभ्यास से मिथ्यात्वकर्म और अनंतानुबन्धी कषाय का उपशम हो जाता है और सम्यग्दर्शन पैदा हो जाता है । श्री अमृतचन्द्र आचार्य ने श्री समयसार कलश में कहा है उपनयविरोधध्वंसिनि स्यात्पदके जिनचर्चासि रमन्ते ये स्वयं वान्तमोहाः । सपदि समयसारं ते परंज्योतिरुच्चै रनवमनयपक्षाक्षुण्णमोक्षन्त एव ॥ अर्थ -- निश्चयनय और व्यवहारनय के विरोध को मेटने वाली स्याद्वाद से लक्षित जिनवाणी में जो रमते हैं वे स्वयं मोह को वमन कर शीघ्र ही परमज्ञान ज्योतिमय शुद्धात्मा को, जो नया नहीं है और न किसी नय के पक्ष से खंडन किया जा सकता हैं, देखते ही हैं । स्वाध्याय श्रावकधर्म और मुनिधर्म के लिये उपकारी है। मन को अपने अधीन रखने में सहायक है ॥ ८६ ॥ अथ कथं जनेन्द्र शब्दब्रह्मणि किलार्थानां व्यवस्थितिरिति वितर्कयति - दव्वाणि गुणा तेसि पज्जाया अट्ठसण्णया भणिदा' । तेसु गुणपज्जयाणं अप्पा दव्व त्ति उवदेसो ॥ ८७ ॥ द्रव्याणि गुणास्तेषां पर्यायाअर्थसंज्ञया भणिताः । तेषु गुणपर्यायाणामात्मा द्रव्यमित्युपदेशः ॥८७॥ द्रव्याणि च गुणाश्च पर्यायाश्च अभिधेयभेदेऽप्यभिधानाभेदेन अर्थाः, तत्र गुणपर्यायानिर्यात गुणपर्यायैरन्त इति वा अर्थाः द्रव्याणि द्रव्याण्याश्रयत्वेनेति द्रव्यंराश्रयभूतैरर्यन्त इति वा अर्था गुणाः द्रव्याणि क्रमपरिणामेनेर्यात द्रव्यैः क्रमपरिणामेनार्थन्त इति वा अर्थाः पर्यायाः । यथा हि सुवर्ण पीततादीन् गुणान् कुण्डलादींश्च पर्यायानिर्यात तैरर्यमाणं वा अर्थो द्रव्यस्थानीयं यथा च सुवर्णमाश्रयत्वेनेयति तेनाश्रयभूतेनार्यमाणा वा अर्थाः पीततादयो गुणाः, यथा च सुवणं क्रमपरिणामेनेयति तेन क्रमपरिणामेनार्यमाणा वा अर्थाः १. भणिया (ज० वृ० ) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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