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________________ पवयणसारो ] [ ६७ की (पज्जयं) द्रव्यों की पर्यायों को इस सब ज्ञेय का ( जाणदि) जानता है ( तं गाणं) वह ज्ञान (अदिदिथं ) अतीन्द्रिय ( भणियं ) कहा गया है । इस ही से सर्वज्ञ होता है। इस कारण से पूर्व गाथा से कहे हुए इन्द्रियज्ञान तथा मानस को छोड़कर जो कोई विकल्प रहित समाधिमयी स्वसंवेदन ज्ञान में सब विभाव परिणामों को त्याग करके प्रीति व लयता करते हैं वे ही परम आनन्द हैं एक लक्षण जिसका सुख स्वभानमत्री सर्वपद को प्राप्त करते हैं, यह अभिप्राय है ॥४१॥ इस प्रकार अतीत व अनागत पर्यायें वर्तमान ज्ञान में प्रत्यक्ष नहीं होती हैं ऐसे बौद्धों के मत को निराकरण करते हुए तीन गाथाएं कहीं, उसके पीछे इन्द्रियज्ञान से सर्वज्ञ नहीं होता है किन्तु अतीन्द्रियज्ञान से होता है ऐसा कहकर नंयायिक मत के अनुसार चलने वाले शिष्य को समझाने के लिये गाथा हो, ऐसे समुदाय के पांचवें स्थल में पाँच गाथाएं पूर्ण हुई । अथ ज्ञेयार्थ परिणमनलक्षणा क्रिया ज्ञानान्न भवतीति श्रद्धातिपरिणमदि णेयमट्ठ णादा जदि णेव खाइगं' तस्स । गाणं प्ति तं जिणिवा खवयंतं कम्ममेवृत्ता ॥ ४२ ॥ परिणमति ज्ञेयमार्थ ज्ञाता यदि नैव क्षायिकं तस्य । ज्ञानमिति तं जिनेन्द्राः क्षपयन्तं कर्मैवोक्तवन्तः ॥४२॥ परिच्छेत्ता हि यत्परिच्छेद्यमयं परिणमति तन्न तस्य सकलकर्म कक्षयप्रवृत्तस्याभाविपरिच्छेदनिदानमथवा ज्ञानमेव नास्ति तस्य । यतः प्रत्यर्थपरिणतिद्वारेण मृगतृष्णास्भोभायसंभावनाकरणमानसः सुदुःसहं कर्मभारमेवोपभुञ्जानः स जिनेन्द्र रुद्गीतः ॥ ४२ ॥ भूमिका – अब, ज्ञेय पदार्थ रूप परिणमन जिसका लक्षण है, ऐसी (ज्ञेयार्थ परिणमस्वरूप ) क्रिया ( क्षायिक) ज्ञान से ( उत्पन्न ) नहीं होती है, यह श्रद्धा व्यक्त करते हैं अन्वयार्थ --- [ज्ञाता ] जानने वाला आत्मा [ यदि ] जो [ ज्ञेयं अर्थं ] ज्ञेय पदार्थ रूप [ परिणमति ] परिणत होता है ( राग-द्वेष सहित सविकल्प रूप, क्रम-पूर्वक जानता है) तो [तस्य ] उस आत्मा के [ क्षायिक ] क्षायिकज्ञान [न एव] नहीं है [ अथवा ज्ञान न एव इति ] अथवा ज्ञान ही नहीं है क्योंकि [ जिनेन्द्राः ] जिनेन्द्र देव [] उस पुरुष को [ कर्म एव ] कर्म को ही [ क्षपयन्तं ] अनुभव करने वाला [ उक्तवन्तः ] कहते भये । अर्थात् जिनेन्द्रदेव ने कहा 1 १. खाइयं ( ज० वृ० ) ।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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