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________________ पक्ष्यणसारो विषय-सूची शानतत्त्व प्रापन नामक प्रथम अधिकार पापा संख्या विषय पृष्ठ संख्या श्री अमृतचन्द्राचार्यकृत मंगलाचरण श्री जयसेनाचार्यकृत मङ्गलाचरण श्री कुन्दकुन्दाचार्यकृत मङ्गलाचरण वीतरागचारित्र की उपादेयता और सरागचारित्र की हेयता स्वरूपाचरणचारित्र अथवा निश्चयचारित्र का लक्षण पातनिका का लक्षण द्रव्य अपनी पर्याय से तन्मय होता है निश्चय व व्यवहार धर्म का स्वरूप; तथा शाद अमृद्ध उपादान का स्वरूप शुभ अशुभ और शुद्धोपयोग का लक्षण १६-२१ पर्याय के बिना द्रव्य नहीं है, गुण व पर्याय का लक्षण धर्म परिणत आत्मा यदि शुद्धोपयोग सहित होता है तो मोक्ष सुख पाता है यदि शुभोपयोग युक्त होता है तो स्वर्ग सुख पाता है। २५-२६ अपहृतसंयम, सरागचारित्र और शुभोपयोग ये एकार्थवाची हैं तथा उपेक्षासंयम वीतरागचारित्र शुद्धोपयोग ये एकार्यवाची हैं। वीतरागचारित्र से निर्वाण और सरागचारित्र से स्वर्ग मुख पश्चात् अनुकूल सामग्री के सद्भाव में मोक्षसुख प्राप्त होता है अशुभोपयोग का फल शुखोपयोग का फल अतीन्द्रियसुख शुद्धोपयोग का लक्षण शुद्धात्मा अथवा सर्वस का स्वरूप तथा शुद्धात्मा जयभूत पदार्थों के बोध को प्राप्त होता है। प्रथम शुक्लध्यान का नाम शुद्धोपयोग है भिन्न कारकों की अपेक्षा नहीं है अत: स्वयंभू है, शुद्धोपयोग से उत्पन्न होने वाले शुद्धात्म स्वभाव के लाभ के लिए अरहन्त भगवान् द्रव्याथिकनय से नित्य और पर्यायाथिकनय से अनित्य है ३६-४० १८ सिद्धों में उत्पाद व्यय ध्रौव्य । कारण समयसार का नाश और कार्यसमयसार का उत्पाद, तथा ज्ञेयों की अपेक्षा केवलज्ञान में परिणमन ११-४२ १२१ सर्वज्ञ को मानने वाला सम्यग्दृष्टि होता है ४३ संसारीजीव के इन्द्रियज्ञान व मुख है। केवली के अतीन्द्रियज्ञान व सुख है। मुख का लक्षण अनुकूलता है ४४-४५
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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