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! पवयणसारो जैसे वास्तव में चित्रपट में अतीत, अनागत और वर्तमान वस्तुओं के आलेख्याकार (चित्र) साक्षात् एक क्षण में ही भासित होते हैं, इसी प्रकार ज्ञान-भित्ति में भी (ज्ञान भूमिका में भी, ज्ञान-पट में भी अतीत, अनागत और वर्तमान पर्यायों के ज्ञेयाकार साक्षात् एक क्षण में ही भासित होते हैं) (३) सर्व ज्ञेयाकारों की तात्कालिकता (वर्तमानता) अविरुद्ध है। जैसे नष्ट और अनुत्पन्न वस्तुओं के आलेख्याकार वर्तमान ही हैं, इसी प्रकार अतीत और अनागत पर्यायों के ज्ञेयाकार वर्तमान ही हैं।
तात्पर्यवृत्ति अथातोतानागतपर्याया वर्तमान ज्ञाने सांप्रता इव दृश्यन्त इति निरूपयति,
सम्वे सवसम्भूवा हि पज्जया सर्वे सद्भूता असद्भूता अपि पर्यायाः ये हि स्फुट वट्टते ते पूर्वोक्ता पर्याया वर्तन्ते प्रतिभासन्ते प्रतिस्फुरन्ति । क्व ? णाणे केवलज्ञाने। कथंभूता इव ? तपकालिगेय तात्कालिका इव वर्तमाना इव । कासां सम्बन्धिनः ? तासि दवजावीणं तासां प्रसिद्धानां शुद्धजीवद्रव्यजातीनामिति । व्यवहित सम्बन्धः कस्मात ? विसमतो स्वकीयस्वकीयपदेशकालाकारविशेषः सतरव्यतिकरपरिहारेणेत्यर्थः।
किंच-यथा छमस्थपुरुषस्यातीतानागतपर्याया मनसि चिन्तयतः प्रतिस्फुरन्ति, यया च चित्रभित्तो बाहुबलिभरतादिव्यतिक्रान्तरूपाणि श्रेणिकतीर्थकरादिभाविरूपाणि च वर्तमानानीव प्रत्यक्षेण दृश्यन्ते तथा चित्रभित्तिस्थानीयकेवलज्ञाने भूतभाविनश्च पर्याया युगपत्प्रत्यक्षेण दृश्यन्ते, नास्ति विरोधः। यथायं केवली भगवान परम्पपर्यायान परिच्छित्तिमात्रेण जानाति न च तन्मयत्वेन निश्चयेन तु केवलज्ञानादिगुणाधारभूतं स्वकीयसिद्धपर्यायमेव स्वसंवित्याकारेण तन्मयो भूत्वा परिच्छिमत्ति जानाति, तथासनभव्यजीवेनापि निजात्मसम्यक्त्रद्धानज्ञानानुष्ठानरूपनिश्चयरत्नत्रयपर्याय एव सर्वतात्पर्येण ज्ञातव्य इति तात्पर्यम् ॥३७॥
___ उत्थानिका-आगे कहते हैं कि आत्मा के वर्तमान ज्ञान में अतीत और अनागत पर्यायें वर्तमान के समान दिखती हैं
अन्वय सहित विशेषार्थ-(तासि दध्वजावीणं) उन प्रसिद्ध शुद्ध जीव द्रव्यों को व अन्य द्रव्यों की (ते) वे पूर्वोक्त (सब्वे) सर्व (सबसम्मूदा) सद्भत और असङ्कत अर्थात् वर्तमान और भूत तथा भविष्य काल की (पज्जया) पर्याय (हि) निश्चय से या स्पष्ट रूप से (णाणे) केवलज्ञान में (विसेसदो) विशेष करके अर्थात् अपने-अपने प्रदेश, काल, आकार आदि भेदों के साय संकर व्यतिकर वोष के बिना (तक्कालिगेव) वर्तमान पर्यायों के समान (बट्टते) वर्तती हैं, अर्थात् प्रतिभासती हैं या स्फरायमान होती हैं।
___ भाव यह है कि जैसे छमस्थ अल्पज्ञानी मति श्रुतज्ञानी पुरुष के भो अंतरंग में मन से विचारते हुए पदार्यों को भूत और भविष्य पर्याय प्रगट होती हैं अथवा जैसे चित्र