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________________ पवयणसारो ] बोष नहीं है। परन्तु ज्ञान शक्ति भिन्न नहीं है वह आत्मा से अभिन्न है। यदि ऐसा मानोगे कि भिन्न शान से आत्मा ज्ञानो हो जाता है तब दूसरे के ज्ञान से अर्थात् भिन्न ज्ञान से सर्व ही कंभ, खंभा आदि जड़ पदार्थ भी शानी हो जायेंगे सो ऐसा होता नहीं । (णाणं) ज्ञान (सय) आप ही (परिणमदि) परिणमन करता है अर्थात् जब भिन्न ज्ञान से आत्मा ज्ञानी नहीं होता है तब जसे घट की उत्पत्ति में मिट्टी का पिड स्वयं उपादानकारण से परिणमन करता है वसे पदार्थों के जानने में ज्ञान स्वयं उपादानकारण से परिलमल करता है तसा हा गाठा) मानहारनय से सब ही ज्ञेय पदार्थ (णाठिया) ज्ञान में स्थित हैं अर्थात् जैसे दर्पण में प्रतिबिम्ब पड़ता है तैसे ज्ञेय पदार्थ ज्ञानाकार से ज्ञान में झलकते हैं, ऐसा अभिप्राय है ॥३५॥ अथ कि ज्ञानं कि ज्ञेयमिति व्यक्ति तम्हा जाणं जीवो यं वत्वं तिहा समक्खादं । 'दव्वं ति पुणो आवा परं च परिणामसंबद्धं ॥३६॥ तस्मात् ज्ञान जीवो ज्ञेयं द्रव्यं त्रिधा समाख्यातम् । द्रव्यमिति पुनरात्मा परश्च परिणामसंबद्धः ।।३६।। यतः परिच्छेदरूपेण स्वयं विपरिणस्य स्वतन्त्र एव परिच्छिनत्ति ततो जीव एव ज्ञानमन्यद्रव्याणां तथा परिणन्तं परिच्छेत्तं चाशक्तेः । ज्ञेयं तु वृत्तवर्तमानपतिष्यमाणविचित्रपर्यायपरम्पराप्रकारेण विधाकालकोटिस्पशित्वादनाद्यनन्तं द्रव्यं, तत्तु ज्ञेयतामापद्यमानं द्वेधात्मपरविकल्पात् । इष्यते हि स्वपरपरिच्छकत्वादवबोधस्य बोध्यस्यैवंविधं वैविध्यम् । ननु स्वात्मनि क्रियाविरोधात् कथं नामात्मपरिच्छेदकत्वम् । का हि नाम किया कीदृशश्च विरोधः । क्रिया ह्यत्र विरोधिनी समुत्पत्तिरूपा वा ज्ञप्तिरूपा धा। उत्पत्तिरूपा हि तावन्नक स्वस्मात्प्रजायत इत्यागमाद्विवेव । ज्ञप्तिरूपायास्तु प्रकाशनक्रिययय प्रत्यवस्थितत्वान्न तत्र विप्रतिषेधस्यावतारः । यथा हि प्रकाशकस्य प्रदीपस्य परं प्रकाश्यतामापन्न प्रकाशयतः स्वस्मिन् प्रकाश्यते न प्रकाशान्तरं मन्यं, स्वयमेव प्रकाशनक्रियायाः समुपलम्भात् । तथा परिच्छेदकस्यात्मनः परं परिच्छेद्यतामापन्न परिच्छिन्दत: स्वस्मिन् परिच्छेद्ये न परिच्छेदकान्तरं मृन्यं, स्वमेव परिच्छेदनक्रियायाः समुपलम्भात् । ननु कुत आत्मनो द्रव्यज्ञानस्वरूपत्वं द्रव्याणां च आत्मज्ञेयरूपत्वं च । परिणामसं. १. दवति (ज. वृ०)।
SR No.090360
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShreyans Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Religion
File Size19 MB
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