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________________ असत्तरिमो संधि ८५ [४] ऐसा है वह कालरूपी महानाग 1 उसका परिवार, उससे भी अधिक असह्य और विषम है? वह उत्सर्पिणी और अवसपिणी इन दो नागिनों से घिरा है। एक-एक नागिनके सीन सीन समय हैं जिनके पहले दुः और सु उपसर्ग लगते हैं, (दुःषमा-सुषमा) अर्थात् सुघमा, सुषमा-सुषमा, सुषमा-दुःपमा, दुःषमा-सुषमा, दुःषमा, दुःषमा-दुःषमा। इसके भी साठ पुत्र है जो संकःसरके नामसे प्रसिद्ध हैं, फिर उनकी दो-दो पनियाँ हैं, जो उत्तरायण और दक्षिणायनके नामसे प्रसिद्ध हैं। चैत्रसे लेकर फागुन तक उसके छह विभाग है, उसके भी-कृष्ण और शुक्ल नामके दो पुत्र हैं, उनकी भी पन्द्रह-पन्द्रह प्राणप्रिया पनियाँ हैं। उस महाकालरूपी नागका यह महापरिवार है, उसके दूसरे सदस्यों को कौन गिन सकता है ? तीनों लोकों में एक भी आदमी ऐसा नहीं जिसको इसने न इंसा हो ॥१-९॥ [५] यह सुनकर इन्द्रजीत और मेघवाहन, दोनों अचानक करुणासे उद्वेलित हो उठे। उन्होंने संन्यास ले लिया। मय, कुम्भकर्ण, मारीच और दूसरे नरेन्द्र तथा अमरेन्द्र भी इसी प्रकार संन्यस्त हो गये। शील ही उनका अब एकमात्र आमरण था। आकाश ही पास था, और हाथ ही १. साठ संवत्सर रूपी पुत्र हैं : प्रभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, महषाम्य, प्रमाथी, विक्रम, वृष, चित्रभानु, सुभान, तारण, पार्थिव, व्यय, सर्वजित्', सर्वधारी, विरोधी, विकृति, खर,नन्दन, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलम्ब, विलम्बो, विकारी, सर्वकारी, प्लवंग, सुभिक्ष, शोभन, कोषी, विश्वावसु, पराभव, प्रलंब, कोलक, सौम्य, साधारण, विरोध, परिषाबी, प्रमादी, आनन्द, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्र, दुर्मति, दुन्दुभि, रुधिरोद्गारी, रक्ताक्ष, क्रोषन और सय ।
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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