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पउमचरित
सो काल-भुअङ्गमु दुखिसही। भ्रमणु वि विसमा परिचार तहाँ ॥७॥ भच्छइ परिवेटिड सप्पिणिहि। चिहि बोसप्पिणि-अवसप्पिणिहि ॥ एकछह तिमि तिणि समय । सु-दु-पढम-समुत्तर-णाम य ॥३॥ ताह चि उप्पण्ण सढि सणय । संघच्छर-णाम पसिद्धि गय ॥धा एकेको विणि कळसाई। अयण जामण पहुसाइँ ।।५।। एककहाँ नहि छ-च्छाह । फग्गुण-अवसाण चेत्तपमुह ॥६॥ एककहाँ सही वि धवल-कलण । उप्पण्णा पुत दुइ दुइ जे जण ।।। एकेकहाँ तहि षि पाण-पियउ। पण्णारह पण्णारह तियउ ८॥
धत्ता
गुहु परियणु काल-भुगमहाँ अवरु गणेवि के सकियट । सो तेहउ तिहुमणे को विग वि जो ण विभाएं रशियउ ।।५।।
[५]
संगिसुणेवि करुण-रसम्मइय। मय-कुम्भयपण-मारिधि सिंह । सहससि बाय सोकाहरण ।
इन्दइ-घणवाष्ण पावइय || भवर वि परिन्द ममरिम्द-गिह ।।२।। आयास-पास कर-पावरण ॥३॥