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________________ सत्तसत्तरिमो संधि गति दे दी, चक्रवाक जोड़ोंको स्तन संगति दे दी, लाल कमलोंको मुखका अनुराग दे दिया, और मधुकर वृन्दको मुखका आलाप दे दिया, सहस्रों का कोमल ओमानकामी, और कुवलयोंको नयनोंकी शोभा दे दी। हजारों युवतियाँ पानीसे निकल कर आलिंगन दे रही थीं, मानो पीड़ित होकर करुण महारसको ग्रहण कर रही थीं ॥१-१८॥ [१९] तब विभीषणने दूरसे ही प्रणाम किया, और सौन्दर्यको महासरिता लंका परमेश्वरीको धीरज बैंधाया। उसने कहा, "हे बालहंसके समान सुन्दर गमनवाली, आज भी तुम्ही राज्यकी स्वामिनी हो, आज भी तुम्हारी आशा शोभित है, वही छत्र है, और वही सिंहासन है। वही चामर हैं, और वही ध्वजदण्ड है, वही रत्नोंके कोष और तीनों खण्ड धरती। वही अश्व, वही गज और वही रथ । और वे ही तुम्हारे सब पुत्र है। वही सब अशेष मनचाहे अनुचर हैं, आज्ञापालक वे ही नृप हैं, वहीं तुम लंकाकी स्वामिनी हो, प्रसन्न होओ, और वसुन्धराका उपभोग करो" यह सुनकर रायणकी पत्नी मन्दोदरीने जो विद्याधर कुमारियों में श्रेष्ठ थी बोली-"यह लक्ष्मी एक चंचल कुमारी है ! क्या भोगूं जिसे स्वामी भोग चुके हैं । हे स्वामी, कल मैं सत्र परिग्रहका परित्याग कर दूंगी। अपने परिवारके साथ 'पाणिपात्र' आहार ग्रहण करूंगी" ||१-१०॥ [२०] यह सुनकर असाधारण रामको रोमांच हो आया। उन्होंने साधुवाद देते हुए कहा, "तुम' संसारमें सर्वश्रेष्ठ बनो" ! यह कहकर जय-लक्ष्मीके निकेतन, सब लोग अपने अपने आवासोंको चल दिये। उन्होंने अपने दुकूल-वस्त्र ऐसे पहन लिये जसे वैयाकरण व्याकरणको धारण कर लेते हैं। दशानन
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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