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पउमचरित
मुह-मगुरार रस-अरविन्दहुँ। वत्त-सोह समयस-सहासहुँ ।
महु भालाधड महुअर-विन्दहुँ ८|| णयम-छवि कुवलयहुँ असेसडें ॥९॥
यता
णीरु तरेपिणु जुभाइ-सहासई साइड दिन्ति । पोळ वि पोलेंवि कलुणु महासु णा छइम्ति ||१०॥
[.. ] ताब बिहीसण-णाम किम-दूगा जिपणाम ।
डायणम्म-महासरि पीरिम का-पुरेसरि ॥१॥ पाक मराज-कील-गाइ-गामिणि । म वि स तुहार सामणि ॥२॥ सोहउ त ज तुहारक पेसणु। छत्सई तार तं जि सीहासणु ॥३॥ चमाई ताई ताई पय-दण्डहै। स्रण-गिहाणई सुह-ति-खण्ड ॥॥ से जि सुराते जि गय सन्दम । ते जितुहारा सयल वि गन्दश ||4|| से जि असेस भित्र हिमाच्छा। से जि गराहिष भाण-वरिषछा ॥६॥ सा तु सा जै छा परमेसरि। इन्दइ भुलाउ सयल बसुन्धर' ॥७॥ तं णिसुणेवि बोलिउ रावणि । विनाहर-कुमार-चूरामणि 'लपिन कुमारि व चाम-चित्ती । किन भुञ्जमिछ। साएं शुत्ती ॥९॥
पहु मई काएँ सम्व-सा-परिचाड करेम्बर । स? परिवारंग पाणि-पसे माहार भएप' ||2||
तं गिसुगै वि णीसाग पुरुड पहने रामेंग।
साहुकारिउ रावणि होहि भन्ध-नरामणि' ॥॥ एम मले विजयनि-भिवासहाँ। सम्बगियाँ गियय-आवासही ।।२।। परिहानियाँ दुई बरथई। वापरणाई व छह-सदस्य ॥३॥