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परमचरित
सं णिसुणेवि हकीसें कुपाई बिहुणिय-सोस ।
'लक्खण-समु किय-पेसणु विहब केम विहीसणु |१| विणयवन्तु भवन्त-सणे। अणु वि खतिय-मग्गुण एहउ ॥१॥ जण समाशु रासु सो हम्मद । अबसें सहुँ अबमाणु ण गम्मइ ॥३॥ अहवइ किं करन्ति ते कुदा । भग्ग-मटफर संलए छुदा ॥४।। उक्खय-दन्त मत्त मायकव। दादुप्पादिय पवर भुषाच ॥५॥ जाहर-घहर-परिहीण महन्द व ।। अण्णइ-मग महीहर-विन्द व ॥६॥ लडाएस पधाइय किर। उषय-पहरण-णिया-भयकर ॥७॥ गम्मिणु तेण असेस वि राणा। दुम्मण दीण मिरुपाय-माणा ।।८॥ लक्षण-रामहुँ पासु पराणिय। सहुँ अन्तेउरेण सरे पहाणिय ।।२।।
घत्ता
लोयाचारेण पाणिड दिण्णु दसापण-वीरहों। अलि-जहि व पर धिवन्ति कायण्णु सरीरहों
भह दहमुर-पियत्तिहें
पचुनोचिय-अत्य अहवद वसुमई जे दिमाउ । सं पहु पच्छ मग्गिजन्तई। पुणु वि पडीव बुड़ाई सस्वरें। पुणु णीसरियई सरहों रउदहाँ। जल लायाणु प्वाई मेलम्तहूँ। वाशिम सरही मराल? घिर-गइ।
मुच्छाविव (!) भरिति । सलिल भिवन्ति व मथएँ ॥१॥ सोक्स मसेस् विभासि उचिण्णा ॥२॥ दिन्ति णाई देवन्त-रुवन्तर ।।।
पाविट्ठा णरयम्मन्तरें ।।४।। पं मवियाई संसार-समुरहों ॥५। णे तिघलीड तरङ्गहुँ अन्तर्रे ॥६॥ चाचाक-झुबकहुँ धण-समद ॥