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परमचरित
स्म्म-विराहिय-तार-तरकही। चन्दकिरण करणय अङ्गहों ।। गवय-गकरन-सुसल-गरिन्दहीं। मल-गीकहाँ माहिन्द माइन्दहीं ॥६॥ इन्दर-कुम्मयण का भागहों। लोयाचारु करहों सरे पहाणों' ॥७॥ नं पिमणेधि वृत्त मामस्त है। पत्र-प्रसार-मन्त पट्दन्त हि ॥६॥ 'णाह ग होइ एहु महारउ । सम्बहँ जणण-वहरु बहारउ |५||
पत्ता इन्दइ-राणउ सबिलु णिऍवि जइ कह घिमि वियाह । तो अम्हारउ खन्धावारु सम्वु दलवाहा ।।
किंग्ण परकम बुझिउ जहमहुँ सुर-बले शजिस्व ।
जिर्नचि बसा यमबम्तहों मग्गु मस्ट जयन्तहों ॥१॥ माणु विपषभ-पुत्त अल-लुबड । सो वि माग-यासहि निवड |२| मामय सुगीन सहाय। पड ते वि तेण जि दिम्वरथं ॥३॥ अणु वि कुम्भयण्णु किं धरियर । जाड्य समझेवि णीसरियड ॥|| तहि भवसरें सं ते नियम्भिाउ । विगा दिट्ट बालु सयलु विस्मिन।।५। अण्णु वि मारुद भावह पाविड, तारा-सुऍण दुक्ख लोगबिद ।।६।। ते विग्नि भगिलाण-सारमा। केण परियि बदामरिसा Hil क्या मिण हुन्ति मणि जस । वदा मर मुन्ति किंमयगळ ॥८॥ पद्धा कम्बालाव भगरा । किषण हुन्ति जणव गुरुनारा ॥५॥
घत्ता आय हायेण माह-बहरु परिषषि मीसणु । एड क जाण काई करेसह ने विहीस' .