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सत्तमत्तरिमो संधि और रसमें कुशल थे। जो रति रण-दानसे प्रेम रखते थे, देव ताओंकी कान्ति जीतनेसे जिनको प्रभा द्विगुणित हो रही थी, जो तीनों लोकोंको सतानेवाले थे, देवताओंक समूहको सताना जिनके लिए एक खेल था । जिन्होंने सों दिशाओंको कैंपा दिया था, जो समस्त आगमोंकी चरम सीमापर पहुँन चुके थे । ऐसे उन अत्यन्त विदग्ध मुखों और अधरोंको सूने घरों की भाँति एक झणमें खाकमें मिला दिया। जो विशाल तरल स्वच्छ और मुग्ध स्वभावके थे, भाग्यके वशसे वे नेत्र भी राल बन गये ॥१-१०॥
[१३] जो कान कुण्डल और मणियोंसे मण्डित थे, जिन्होंने समस्त शास्त्रोंका पारायण किया था, वे भी आगमें विलीन हो गये एक लताकी तरह झुलस गये । जो सिर सदैव जिन भगवान के चरणकमलोंको छूते थे, जो शेखर मुकुट और राजपट्टसे शोभित ये और जिनका मान अंजनगिरिक शिस्त्र रकी नरह ऊँचा था--जो सजल मेघोंके दुर्गकी भौति थे, जिनके गाल कानोंके कुण्डलोंसे चमक रहे थे, जिनके भालनल अष्टमीके चाँद की तरह थे, जिनकी भौहें सदैव युद्धकालमें भयंकर रहती धी, बाँके, काले और चंचल जिनके बाल थे, यमके तीरों की तरह नुकीली जिनकी आँखें थी, जिनकी दशनावली अधरोंमें से दिखाई देती थी, धुंघराले स्वच्छ बालोंवाले वे सिर एक क्षण में भस्म शेष रह गये। आग भी आज, पराभवसे शून्य, समर्थ समज्वाल और सफल मनोरथ हो सकी। जो राग देवताओंका अपहरण करता था वह भी आगकी भाँति जाता रहा था, सीताको झापाग्निके समान समाप्त हो गया, लक्ष्मणकी कोपानिके समान प्रगट हुआ, और शेषनागको फूत्कारकी भाँति उछल पड़ा, और धरतांके हदयके समान जल