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________________ सप्तसत्तरिमो मंधि जैसा थाति समय, मनाते ममयः करते मरणको दूर भगाया था। जो असुरों और सुरों सहित' दुनियाको यमदूतोंकी तरह सत्तानेवाले थे, वे बीसों ही हाथ एक पलमें राखके ढेर भर रह गये ॥१-१०।। [११] दशकन्धरको आग मानो फिरसे देख रही थी कि रावणकी गर्दन सजीव है. या निर्जीव है। दसमुखोंसे वह जीव ऐसा लगता था मानो कण्ठमें स्थित हो। वैसा ही जन्मके समय, बचपन में, नवग्रहकण्ठाभरणोंके उत्पन्न होनेपर जैसा था । हजारों विद्याओं- राधना, पन्द्रहात सध्यार ग्रहण करते समय, मन्दोदरीका पाणिग्रहण करते समय, सुर• सुन्दरियोंको बन्दी बनाते समय, कनक और कुबेरको हटाते समय, यम-गजेन्द्रका प्रतीकार करते समय जैसा था। अष्टापदको कपाते हुए जैसा था, सहस्रकिरणको कैपाने में जैसा, नलकूबर और बलका मर्दन करते समय जैसा था, शक और दूसरे सुभटोंके मर्दन के समय जैसा था, वरुणाधिपको वश में करते समय जैसा था, और बहुरूपिणी विद्याकी आराधनाके समय जैसा था। क्या पता, अब वैसा मुखराग हो या न हो, मानो इसी कुतूहलसे आग उसका मुख देखने आयी थी॥१-१०॥ [१२] जब आगने रावणके मुखको छुआ तो उससे हजारों ज्वालाएँ ऐसी फूट पड़ी, मानो विलासिनियोंका झुण्ड किसीके मुँह लग गया हो ! आग. रावणके दसों मुख जलाकर चल दी। मानो दसों चन्द्रमाओंको निगलकर राह चल दिया हो। उनमुखोंको जो पान खानेसे लाल थे, जो फागुनके सूर्य की तरह चमकते थे, जो दांतोंकी कान्तिसे बिजलीकी शोभा धारण करते थे । जो मलयपवनकी सुगन्धसे उच्छ्वसित थे। जिन्होंने मुग्ध इन्द्राणीके अधरोंका मुखपान किया था, जो भोजन खान-पान
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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