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परमचरिड
घत्ता से समपुर-जग ५३.पशि का। से णिविसण वीस वि वाहु-दण्ह मसिहूया ॥१०॥
दसकन्दर-संदीवउ पाई णि एप पडीवर ।
किं दहगीवहाँ गीवर पिजीवाड सजीवउ ॥१॥ सो में जीउ कण्ठ-ट्रिउ गावइ । णावह दह-मुझेहिं योहायड् ॥२॥ जेहउ वाल-भावे पटमुरुम ।। क-गइ-कण्ठाहरण-समुन्मवें ॥३॥ जेहउ विज-सहस्साराहणें। जेहड बदहास-सि-साहगें ॥॥ जेहर मन्दीयरि-पाणिग्ग। जेहाट सुरसुन्दर-बन्दिरगहें 114 जेहर कणय-धगय-ओसारण। जेहउ जम-गाइन्द-विणिवारण । जेहउ भट्ठावय-कम्पानगें। जेहट सहसकिरण-जूरावणे ॥.।। जेहउ पलकुन्दर-वल-मदणें । जेहउ सकसुहर-कदमदणें ॥८॥ ओहड वरुण पाराहिब-साहणें। जेहा बहुरूपिणि-आराहणे ॥५॥
घत्ता
सेहत एयहि होइ ण होई व किंद मुह-राउ । आएं कोण हुभबहु णा णिहालउ भाउ ।। १०)
वयणु णियन्तु हुासउ पबिड जाळ-सहासड ।
लगु मुहि विसरथउ गा. विलासिणि-सत्थउ || गड सरहसु दहेवि दह वयणहूँ। गइकल्लोलुप इस-ससि-गहण ॥१॥ जाई कहरू-तम्बोलायम्वर । फग्गुण-तरुण-तरणि-परिविम्बई ॥२॥ दसण-पछवि-किय-विज विलासई । मलयाणिल-सुअन्ध-णीसास ॥४॥ मुख-पुरम्घि-पीय-अहर-दलाई। मोयण-खाण-पाण-रस-कुसह ॥५॥