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________________ ¡ सत्तन्तरिम संधि चन्द्रमा प्रतिविम्बित थे, जो सुन्दर कान्तिसे अंकित थे, दुष्ट आगने सज्जनोंकी भाँति जला दिया। जो नितम्ब सुन्दर रमणियोंकी तृप्ति करते थे, रथ, अश्व, गज और विमानों में यात्रा करते थे, सिंहासन और पलंगपर बैठते थे, करधनीके नूपुरोंसे मुखरित रहते थे उसके भी आगने दो खण्ड कर दिये । एक अणमें वे जलकर राख हो गये। रावणका वह हृदय, जिसने कैलास शिखरका आलिंगन किया, जिसने हमेशा कामिनियोंके पीन स्तनोंसे कीड़ा की, जो सदा मोतियोंकी मालासे अलंकृत हो ऐसा लगता था मानो ताराओंसे जड़ित आसमान हो। जो रात दिन सीताविरद्दकी ज्वालामें जलता रहा, आगने बिना किसी विलम्बके उसे भस्म कर दिया ॥१-१२|| [१०] जिन हाथोंने कभी समूचे संसारको हिला दिया था, जिन्होंने शत्रु समुद्रको मथ डाला था, जो ऐरावतको सूँड़के समान सुन्दर थे, जो युद्धका भार उठाने में समर्थ थे, जो स्थिर हड़ और लम्बे थे, सुधियोंको अभय देनेवाले, बीस हथियार धारण करनेवाले थे, जिन्होंने बचपनमें खेल-खेल में साँपों के मुखौंको क्षुब्ध कर दिया था, जिन्होंने गन्धर्व की बावडीका आलोडन किया था, जिन्होंने सुरसुन्दर बुध और कनकका विनाश किया था, जिन्होंने वैश्रवणके वैभव का विनाश किया था और त्रिजगभूषण महागजके गदका विनाश किया था, जिन्होंने यमके दण्डको प्रचण्डतासे उछाल दिया था, और धरती सहित कैलास पर्वतकी उठा लिया था, जिन्होंने सहस्रनेत्रके घमण्डको चूर-चूर किया था और नलकूवरकी पत्नीका मनोरंजन किया था। जिन्होंने अमरोंके दर्पका विनाश किया था, और राजा वरुणके दर्षका दलन किया था, जिन्होंने बहुरूपिणी विद्याकी आराधना की थी और वानर सेनाको
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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