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पउमचरित
आएं मरणाबन्थ-निहोणं । कालुणकन्दु करन्ते लोएं ।।८।। गिउ मसाणु सुरवर-सन्तावणु। विरइउ मल बड़सारित रावणु ॥९॥
__ धत्ता जो परिचहिउ पग्रल-काल कामिणि-थण-डेहिं । सो पुग्ण-क्ख पख्नु कम पहु पछिउ ? हि ॥१०॥
अढावय-कम्पावणे चिय' वडाधि रावणें।
सालन्यास ल-यो उरु सम्मानित अन्ते उरु ।।१।। बार-बार णि णिशेयणु । बार-बार राम्मिय स-वेयण ॥२॥ बार-बार उम्मुह धाहाब। छिन्नमाणु सङ्गिणि-उखु गावइ ॥३॥ अन्तेडर-अणुमरणासङ्कएँ। चिन्ध( कम्पन्ति व भणुकम्प ॥४॥ छनई एम भणन्ति वराया। पर विणु कालु करेगहुँ छाया' ।।१॥ नूरहि पम पाइँ धोसिज्जइ । 'पविणु कामु पासे जिजई' ॥६॥ 'को झुप्पसह रण-मर-लोहि'। एवं णा पाहाविउ सहि ॥७॥ महि अवसर तज्जोणि-विणासणु। सीयासाठ व विष्णु हुआसणु ॥६॥ सहसा उप्पर पडें घि पा सह । कम्पइ तसह एहसइण मुलुकह ॥९॥ 'सगिरि-ससायर-महि-कम्पावणु। मा पुणो वि जीवेसइ रावणु' ॥१०॥
धत्ता पुणु चि पडीवउ चिन्स इ एवं पाई धूमावउ । 'काइँ दहेसमि एयहाँ जो भयसेण जि दड्ढउ' ॥११॥
तहि अवसरें दुक्याउरु मइसिम-वयण-सरोरुहु
[-] लाहिव-अन्तउर । जिउ सलिलही सवसम्मुहु ।।१॥