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________________ 1 सत्तमन्तरिम संघि [4] रामका आदेश पाकर समस्त भट समूहने गीले चन्दनसे युक्त विचित्र ईंधन इकट्ठा किया। बबूल, गोरोचन, चन्दन, देवदारु, कालागुरु, कस्तूरी, कपूर, कंकोल, एला, लवली, लवंग आदि अत्यन्त सुगन्धित प्रमुख वृष्ठोंकी लकड़ियाँ, मरघटपर पहुँचाकर श्रेष्ठ अनुचरोंने त्रिलोकको आनन्द देनेवाले श्रीरामको प्रणाम किया और कहा, "के र हमने लकड़ियाँ डाल दी है, जो दुष्टके उत्कट दानकी तरह कठिन हैं, कामिनियोंके यौवनकी तरह जनोंके द्वारा मर्दन करने योग्य हैं, खोटे कुटुम्बकी तरह अपने स्थानसे भ्रष्ट हैं, शत्रुकुलकी तरह जो जड़ से उखाड़ दी गयी हैं, वादी पुरुषोंके चित्तकी भाँति जो स्थूल हैं ( मोदी हैं) ।" यह सुनकर विख्यात नाम रामने रावणकी अरथी उठवा दी। जिसने शक्तिसे कैलास पर्वत उठाकर उसके गर्वको खण्डित किया था, आज भाग्य के फेरसे साधारण लोग उसे उठाने लगे ॥१-१०॥ ५२ [ ६ ] रावणकी अरथी उठाते हो, परिजनोंमें शोककी लहर दौड़ गयी । तरह- तरहका भीषण हाहाकार गूँज उठा । बड़े-बड़े वितान थे, जो कदलीवन और ईखके खेतोंकी तरह विकृत और दुटकी तरह उद्धत थे। मरघटके भय से पताकाएँ फहरा रही थीं। शंख उसी तरह पूरित थे जिस प्रकार भाई दुःखसे भरा हुआ था। पूर्व बेरकी तरह नगाड़े बजा दिये गये । चोरोंकी भाँति तोरण बाँध दिये गये । चित्तकी भाँति चमर गिर पड़े। खोटी स्त्रीकी भाँति पत्ते गिरने लगे। दुर्भाग्यकी भाँति (रेशमी ) वस्त्र फाड़े जाने लगे, संग्रहको भाँति छत्र धारण किये जाने लगे, दुष्टोंकी भाँति मोती चूरे जाने लगे, शंखोंकी तरह मुख क्षुब्ध हो उठे। इस प्रकार रावणको मृत्यु
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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