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पउमपरित
सतहत्तरी सन्धि
५०-३२ रावणको मृत्युपर विभीषणका वियोग, आहत और मृत शरीरका वर्णन, राम द्वारा विभीषणको सम्बोधन, रावणकी आलोचना, उसके महान् व्यक्तित्वको प्रशंसा, विभीषणके उद्गार, रावणके लिए विभीषणका पश्चात्ताप, रावणकी शवयात्रा, लकड़ियों का वर्णन, रिताका वर्णन, रावणके परिजनोंका शोक, अन्तःपुरका मूर्छित होना, उस दु:षका वर्णन, मागकी लपटोंका वर्णन, प्रत्येक अंगकी वाह-क्रियाका चित्रण, रावणके अंतपर जनताको प्रतिक्रिया, राम द्वारा रावणके परिजनोंको समझामका प्रस्ताव, मन्त्रिवृद्धों द्वारा विरोष, शम्भकर्णसे आशंफा छका विभीषण के प्रति सन्देह, राम द्वारा उन्हें समझाया जाना, लोकाचारसे रावणको जलदान और तर्पण क्रिया, मुवतियों द्वारा सरोवरमें स्नान, शुद्धिक्रिया, मन्दोदरी द्वारा संन्यास ग्रहण करनेका संकल्प । अठहत्तरवीं सन्धि
८०-१०३ राबणकी मृत्युकी प्रतिक्रिया, प्रभातका होना, अप्रमेय बल नामक महामुनिका नगरमें आगमन, दोनों ओरको लोगोंका महामुनिके दर्शनके निमित्त जाना । मुनि द्वारा धर्मका उपदेश, कालचक्रका वर्णन, नागसे उसके रूपकका चित्रण, मेघनाय और इन्द्रजीत द्वारा दीक्षा ग्रहण, रामके बिना सीतादेवीका जामेसे इन्कार, नारीके प्रति लोकमानसकी धारणाका वर्णन, राम और लक्ष्मणका सीतादेवीके पास जाना, सपत्नीक लक्ष्मणका सीता देवीको प्रणाम, सीता सहित राम-लक्ष्मणके प्रबंशसे समचा नगर प्रसन्नतासे खिल उठा। नागरिकोंकी प्रतिक्रियाएँ, राम द्वारा रायणके भवन में प्रवेश 1 रावणके भवनका चित्रण, शान्तिनायके जिनालयमे जाकर राम द्वारा जिनेन्द्र भगवानको स्तुति,