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________________ ५४ पउमचरि वेबइ बाहिणि किं सहूँ सीमहि । छिमाण वणसड् जग्ोस । पवणु ण मिडइ भाणु कर सइ विन्ध कहि ब्यि एयही असलिय- माणड़ों पूपिणइणि आहो रोबहि किं तिहुण वसियरण : यहि किय-कुवेर विमाडणु । रोवहि किय-कलासुद्धा रणु । रोहि क्रिय- सुर-भुव वन्धणु । रोहि किय- दियर रह मांडणू । रोवहि किय- फणिमणि-उड़ाठणु । । वाहाव खजन्ती ओसहि ॥ ६ ॥ कहुँ मरणु निरास होस 15 धणु रावल T पाच पिण्डु अणिहालिय धामु । धम्म-त्रिणउ सीविड जासु महिल-मिस-मंसहि मामु || ३ || शेवहि किह णिहि रयप्पाय रोहि किय बहुरुविणि-साइणु । इ-चोरग्गिहुँ सम्बद्द ॥ ८ ॥ विसरुन स्याँहि ॥९॥ घत्ता [ ३ ] दिण्ण-निरन्तर दाणीं । रोबहि काई दसासौं || १ || क्रिय-जिसियर - सम्भुख रणउ ॥२॥ किय जम-महिस- सिङ्ग- उप्पादणु ॥३॥ सहस किरण-ल कुन्धर- बार ||४|| किय-अङ्गावय-दप्पणिसुम्मणु ॥५॥ किय-ससि केसरि केसर-तोदणु ॥ ३ ॥ किय वरुणाहिमाण संचालणु ॥७॥ किय- स्वणियर-नियर मध्याय 114 किय- दारुण-सह- समर ॥९॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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