________________
पउमचरिउ
ताव स-वेयणु उदिउ इन्दह। अप्पड इणई घिवह परिणिन्दह ॥१॥ 'हा हा ताय ताय माणुषणय 1 सुरवर-समर-सहासहि दुजय ॥२॥ पइँ अधन्नएण अन्यमियर। बोलिय-इसिय-रमिय-परिममियई ।। सुत्त-विउद्ध-गमण-आगमण.। परिडिय-जिमिय-पसाहिय-हवणहूँ ।।४।। वण-कीला-जल-कोला-याण। पुतुच्छव-विवाह-वर-पाणई' ।।५।। गेय पण नियाई वर-वजहै। परियण-पिण्डवास-मियरजइँ' ।।६।। तोयदवाहणो वि स कुमारउ । मुच्छाविज्जइ यय-सय-वारउ बा। कन्दर कणई पपड्डिय-वेगणु । अविरल-वाहाऊरिय-लोयणु |८||
घत्ता दुक्नु दसाणण-परियणही सोयहें दिहि जड लवण-रामहुँ । सुर घि सई भुचण हुँ चलिय ल पट्ट कवय-णामहुँ ।।१॥
[७७. सत्तसत्तरिमो संधि
माइ विओएं बिह जिद्द करइ विहोसणु सोय । तिह तिह सुपखेंग रुवइ स-हरि-बल-माणर-लोड ।।
दुम्मणु दुम्मण-बवणउ दुष्क द्धय-सस्थत
अंसु-जकोल्लिय-फायणउ । जहिं रावणु पस्दाथड ||