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पत्रमरित तहि अवसर विउ पक्रवि धाइउ । कावि करेह अलीयह (?) साइड ॥२॥ आलिम्पिशु सध्यायामें। का वि णिवन्ध रसणा-दाम ॥६॥ का विवरसुमि हारे । मिस गरें । का वि उरे ता.वि लीला-कमलं । पमण इ मउलिएण मुह कमसे ॥६॥
छत्ता 'नम्ह हैं चम-धार-यहुअ ाइ वि गिरारिउ पाणहुँ रुष्टइ। तो कि महु पंकसन्तियाँ हिया पट्टी णिविसु ण मुच्चइ' ॥९॥
[२] का त्रि केसाबलि रोलावद। कारणाहि-सन्ति खलाबह ॥१॥ का वि डिल भउहावलि दावइ । हणइ मयाग-प्रणु-छट्टिएँ णविद ॥२॥ का वि जिएइ दिद्वि सु-विसालाएँ। र्ण ढकई पीलुप्पल-माल ॥३॥ का वि अहि सिजइ अविरल-वाहें। पाउस-सिर गिरि व्व जल-चाहे ॥४॥ का वि पियाणणे आणणु लायइ । णं कमलापरि कमलु चढावह ॥५॥ कवि आलिगाइ भुहि विसालहि । णं मोमालइ माल-मालहि ।।६।। का वि परिमसह अग्गा-हस्थयल । छिबइ गाई । व-लीला-कमले ||७| का वि गिम्मक-करमह पयडावद । णं दह मुहहुँ व दप्पणु दाबद्द ।।८।। का बि पओहर-घर-जुअलेणं । सिवा लायग्ण-जलेणं ॥९॥
पत्ता
तहि अवसर केण वि गरेंण इग्या-कुम्भयपण-आधासम् । सहसा जिह ण मरन्ति तिह रावण-मरणु फहिउ परिहासएँ ॥१०॥
[३] 'अजु महन्तु दिट्ट अचरियउ। किह कमलेण कुळिसु जनरिया ॥३॥ किह मुहिएँ मेरु इ मुसुमूरिउ । किह पायालु तिलबें पूरिज ।।२।। .