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पउमचरित
[८] तारा-चाव थाणहाँ चुछ। दुक्खु दुक्खु मुच्छ आमुछउ ।।३।। लग रुएश्वएँ तहिं मन्दायरि। उम्बसि रम्म तिलोसिम-सुन्दरी ।।२।। चन्दवयण सिस्किन्ताद्धारे । कमलाणण गन्धारि वसुन्धरि ।।३।। मालइ चम्पयमाल मणोहार। जयसिरि चन्दणलेह तरिं ।।४।। लच्छि वसन्तलेह मिगलोयण। जोयणगन्ध गोरि गोरोयण ||५|| रयणावलि मयणालि सुप्पह । कामलेह कामलय सयमह ।।६।। सुहय वसन्तनिलय मलयावइ । कुकमतह परम पउमावई ।।७।। उप्पलमाल गुणावलि णित्रम कित्ति त्रुद्धि जयलरिछ मगोरम ||4I
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भा, हिं सोभाऊरियहि अट्ठारहहि मि शुषइ-सहा हि । गव-घण-मालाडम्वहिं छाइउ बिम्स जैम घउ-पासे हि । ९॥
[२] रोबइ लका-पुर-परमेसरि । 'हा रावण तिहुमग-जग-केसरि ॥११॥ र विणु समस्तूरु कहाँ कमा । पर विणु वाल-कोल कहाँ छाई ।।२।। पर पिणु णवभाइ-एकीकरणक। को परिहेसह काठाहरगउ ||३|| पर विणु को वि विज आराखड। पर विष्णु चन्द्रहासु को साहा ।। को गन्धव-वावि मारोहह। कृण्मा छ वि महासु संखोहह ।।। पर विणु को कुबेरु मजेसइ । तिजगविहसणु कहाँ वसिहोसह ॥॥ पई विणु को जमु विणिवारेसा । को कहलासुन्दरण करेसह ।।। सहसकिरणा-णक्षकुम्बर-साकहुँ। को अरि होसइ ससि-वरुणकहुँ 11८।। को णिहाण-स्यगई पालेसह को बहुरूविणि विज लएसा |||