SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उसत्तरिमो संधि " कहींपर टूटे-फूटे पहियोंके रथ थे, कहींपर वनाशनिसे चकनाचूर पहाड़ थे। कहींपर बहुत-से हाथोंवाला रावण उस अन्तःपुरको दिखाई दिया, मानो छिन्न शाखौवाला कल्पवृक्ष ही हो । मानो राजकीय हाथियों के बाँधनेका टूटा-फूटा खूटा हो । रावण, लक्ष्मणके चक्ररत्नसे विदीर्ण हो च का था । अनुरक्त दशों दिशाओंसे जूझते-जूझते जो यह नींद नहीं ले पाया था, मानो वह आम पक्रकी से जपर चढ़ कर, युद्धरूपी वधूके साथ सानन्द सो रहा है ।।१-१८॥ [७] उसकी प्रिय पनियों ने अपने स्वामोको इस प्रकार देखा, जैसे इथिनियाँ सोये हुए हाथीको देखती हैं या जैसे नदियाँ सूखे हुए समुद्रको देखती हैं, या जैसे कमलिनियाँ अस्त होते हुए सूरजको, या जैसे कुमुदिनियाँ बूढ़े चाँदको देखती हैं, या जैसे बिजलियाँ रिमथिम बरसते मेघको देखती हैं, या जैसे अमरांगनाएँ च्युत्त इन्द्रको देखती हैं, या जैसे प्रीष्मकालकी दिशाएँ, अंजनागिरिको देखती हैं, या जैसे भ्रमरमाला सूखे हुए पहाड़को देखती है, या जैसे कलहंसियाँ जलविहीन किसी महासरोवरको देखती हैं, या जैसे सुरषाली कोयलें माधषके बीत जानेको देखती हैं, या जैसे नागिनें गरुड़से आहत सर्पको देखती हैं, या तारा मालाएँ जैसे कृष्णपक्षको देखती हैं, उसी प्रकार वह अन्तःपुर रावणके निकट पहुँचा । उसके दस सिर थे, दस शेखर और दस ही मुकुट थे, वह ऐसा लगता था मानो गुफाओं, वृक्षों और चोटियोंके सहित पहार ही हो। रावणकी वह दशा देखते ही अन्तःपुर–"हे रात्र" कहकर बेदनाके अविरेकसे व्याकुल हो उठा, और शीघ्र हो धरतीपर बेहोश गिर पड़ा ॥१-२॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy