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पडमचरित
तण पाइन्त पाडियइँ पास महारहें महिहरहों
धत्ता चिप्त रणे रयणीयर-णामहुँ ।
कुसुमई शिवरवण-सा !!
अमरहिं साहुकारि हरि-वलें। विजय पधुढे समुट्टिएँ कलयलें ॥ तहि अवसर मणि-गण-विष्फुरियह । उप्परे करु कवि पिय-छुरिया ॥३॥ अप्पड़ गणइ विहीमणु जावे हि । मुच्छएँ णा णिधारित तावेहिं ।।३11 णिवडिउ धरणि-पढ़ें णिचेयणु। दुषखु समुट्टिन पसरिय-वेग्रणु ॥४॥ घरण घरघि रुएवएँ लागउन 'हा भायर मई मुऍधि कहिं गउ ||५|| हा हा मायर का कि णिवारिध । जग-बिरुद्ध धवहरिज णिरारिउ ।।३॥ हा मायर सरीरें सुकुमारएँ। कम पियारिउ चकहाँ धार ॥७॥ हा मायर दुपिणदएँ भुस । सेज नुएँ बि कि महियले सुसङ ॥६॥
किं अवहेरि करेवि थिङ भरुमि सुटुम्माहियत
धत्ता सीसें चडाविय चलण तुहारा । थिउ फुटु आसिक्ति महारा' ॥९॥
[३] रुअा विहीसशु सोयमियड। 'तुहुँ पस्थमिड बसु भयभियउ ॥1॥ तुहुँ ण जिओऽसि सयलु जिउ तिहुअणु मुहुँण मुओऽसि मुअर वन्दिय-जणुार, तुकै पद्धिोऽसि ण पडिङ पुरन्दरु। मउगु ग भगा भग्गु गिरि-मन्दर ॥३॥ दिहि ण ण णट्ट लकाउरि । वाय ण ण णट्ठ मन्दोरि ।।३।।