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छसत्तरिमी संधि
है? अरे ! तुम्हें एक ही चकमें इतना घमण्ड हो गया, पर मेरे लिए इसकी क्या गिनती। क्या कोई दूसरा सिंहकी समानता कर सकता है।" यह सुनते ही लक्ष्मणके ओठ फड़क उठे। उसने चक्र दे मारा । जिस प्रकार किरणोंसे शोभित सूर्यबिम्बका उदयगिरि वातपिरिएट अन्न हो जाता है, उसी प्रकार अपने हाथोंसे प्रहार करते हुए भी रावणका वक्षःस्थल खण्डित होकर गिर पड़ा ।। १-१०॥
लिहसरवीं सन्धि [१] रावणके मारे जाने पर देवताओंने संसारको प्रिय लगनेवाला कोलाहल किया । अब लोकपाल स्वच्छन्द हो गये । नगाड़े बजने लगे। नारद नाच उठे । त्रिभुवन कंटक रावणका ऐसा पतन हो गया जैसे कुलका मंगल कलश नष्ट हो जाये, या नमश्री के दर्पणकी कान्ति जाती रहे, या लक्ष्मीका हार टूट जाये, या पृथ्वी-विलासिनीका मान गलित हो जाय, या युद्धबधूका यौवन दलित कर दिया जाये, दक्षिणदिशा का गज झुक जाये । ऐसा जान पड़ने लगा जैसे सुर-असुरोंके मनकी शल्य निकल गयी हो, रणदेवताको जैसे नमस्कार कर दिया गया हो, तोयदवाहनका वंश ही छीन लिया गया हो,जैसे पवन पुरंदरको अतिक्रान्त किया गया हो, जैसे प्रलयका दिनकर अस्त हो गया हो, लंका नगरीका परकोटा ही टूट-फूट गया हो, सीता देवीका सतीत्व निभ गया, अन्धकार समूह, जैसे इकट्ठा होकर बिखर गया हो, अंजनपर्वत जैसे अपने स्थानसे